शाकाहार एवं विश्वशांति | Shakahar Evm Vishvashanti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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करुणा और शान्ति का फत्सफा : शाकाहार
शाक्ाहार शब्द अब विषय में कहीं भी अपरिव्रित नहीं रहा है।
भाषा की दृष्टि से अनेक रूपों में प्रचलित शाकाह्मर की उपयोगिता से आज
सभी देश किसी न किसी रूप में परिचित हैं। भले ही इसे अपनाने में कोई
कितना ही आगे-पीछे क्यों न हों।
शाकाहार अनेक कारणों से अपनाया जा रहा है। अपने देश में
उसके प्रमुख कारण हैं स्वास्थ्य, श्रावकाचार और अध्यात्म। परन्तु अन्य देशों
में इसे पर्यावरण, शरीर विज्ञान संतुलित जीवन प्रणात्री और पश्चुओं को दी
जाने वाली पीड़ा से उपजी घृणा के कारण भी अपनाया जा रहा है।
जैन धर्मावलम्बियों का आहार पक्ष तो हमेशा से पूरी तरह अहिंसा
और जीव दया पर आधारित रहा है। परन्तु वर्तमान शताब्दी के आते ही
धर्म समाज की मान्यताओं में जो परिवर्तन या कहें विकृतियां आई उससे
हमारा आहार भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका । आहार की भी परिभाषायें
बदलती गई और हम चाहते हुए भी, न तो पूर्ण अहिंसक रह सके और न
ही पूर्ण शाकाहारी। कारण यह है कि आह्र की प्रक्रिया हमें परंपरा से मिली
थी और आज हमारी मानसिकता ऐसी है कि जो बात हमे परंष से मिती
है उनके प्रति हमारा आकर्षण नहीं रहा। उल्टे हमें जब भी अवसर मिलता
है उसमें परिवर्तन करके प्रसन्नता का अनुभव करते हैं हमारा रहन-सहन,
पहनावा और शरीर संस्कार तथा जीविकोपार्जन के साधनों में आई बदलाहट
इसके ज्वलंत उद्धहरण हैं।
इसलिए जब हमारे पारम्परिक आह्मर में परिवर्तन होने लगा, हमारे
चौकों की मर्यादायें भंग होना प्रारम्भ हुई। उनमें बाजार के तैयार मसालों,
फ़ैक्टरियों मे तैयार पापड़, अचार मुरब्वा के डिब्बों, बेकरी में कने विस्क्रियों
और ब्रेड के पेकियों ने प्रवेश पाया, तो हमने चर के कुछ बड़े बूढ़ी महिलाओं
के विरोध के बावजूद प्रसंग्रता का ही अनुभव किया और ये मर्यादायें जब
टूटंना आरंभ हुई तो दूटती ही चली गई) हमारें घर के भोजन कक्ष और
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