केशर उद्योग में कार्यरत श्रमिकों के सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन | Keshar Udyog Me Karyart Shrmikon Ke Samajik Evm Arthik Sthiti Ka Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रम' कहलाती हे, जेस हम परस्पर कहते सुनते हैं कठि अन्नु विद्यार्थी अथवा वकील या कृषक बहुत परिश्रम करता है, बैल बहुत मेहनत क्ट २डे हे, इत्यादि । इसके अतिरिक्त, चेष्टा चाहे वैसा कमाने की दृष्टि से की जाये अधवा स्वास्थ्यवर्च्धन व्ठे लिए, या स्नेह्न व्ठे काएण, डसे श्रम' ही केष । सश्चैेप मे किसी भी कार्य को करने से जो भी चेष्टा होती है, वही साधारण बोलचाल मे श्रम 251 ল্জ্লার্তী ই।”” परन्तु श्रम' का यह बहुत ही व्यापक अर्थ हे ; अर्थशास्त्र मँ श्रम का अर्थ डुतना व्यापक नहीं ই | লী. শত. গাঁ জট গাজা নী, “প্রক্স জলুভত্ব তা লু शाशीेएिकि व मानशिक प्रयत्न है, जो प्रतिफल की প্রাঙ্গা से किया जाता है ।'' ड्थी प्रकार, अर्थशास्त्री मारश्लि क अनुसार श्रम का अर्थ मनुष्य क आर्थिक कार्यों से है, चाहे वे शारीएक हों या मानसिक । वीषु क मतानुसार परिश्रम (या अवा), जिसे द्व्य द्वार मापा जा सकता है, श्रम कटहलाता हे । (व) भारतीय औद्योगिक श्रम की आर्थिक सामाजिक विशेषतायें : भारत में औद्योगिक श्रमिक वर्ण कठा उदय पाथ्चात्य देशों की तुलना में, भिन्‍न परिस्थितियों के अन्तर्णत हुआ है ; अत: उनकी कुछ उल्लेखनीय विशेषतायें हैं, जो ङस प्रकार है 1. एकता का अभाव - भारतीय श्रमिक्छों मेँ उक्ता क्छ सर्वधा अभ्नाव ह । इसका मूल कारण यह है कि वै देश के सभी भागों से और समाज के शसश्नी वर्णों से आए हुऐ होते है । परिणामस्वरषप मजदूरों का वर्ण एक ईसा विचित्र यन्रुदाय बन भया है, जिसमें भिन्‍न-भिन्‍न धर्मों के विभिन्‍न भाषाएँ बोलने वाले, विभिन्‍न रहन-सहन <वं शति-खिवाज के लोग होते हैँ । डन अनेक विभ्निन्नताघ्रीं के कारणा श्रमिक वर्ण में सबठन नहं हे । 2. अनियमित ठपस्थिति - <क्छ नियमित व शमर्पित श्रमिक उसे कहेंगे जो काम पर बराबर बना रहता है तथा जिसने गांव सै अपने व्यापक सम्बन्ध तोड लिए हैं । 1. शकक्‍्शैना, एम.सी. (1996:5): श्रम शमस्याएँ एवं सामाजिक शुरक्षा २स्तोणी पवल्ीव्ठेशन, शिवाजी रेड, मेरठ




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