केशर उद्योग में कार्यरत श्रमिकों के सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन | Keshar Udyog Me Karyart Shrmikon Ke Samajik Evm Arthik Sthiti Ka Adhyayn
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
95 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रम' कहलाती हे, जेस हम परस्पर कहते सुनते हैं कठि अन्नु विद्यार्थी अथवा
वकील या कृषक बहुत परिश्रम करता है, बैल बहुत मेहनत क्ट २डे हे, इत्यादि ।
इसके अतिरिक्त, चेष्टा चाहे वैसा कमाने की दृष्टि से की जाये अधवा
स्वास्थ्यवर्च्धन व्ठे लिए, या स्नेह्न व्ठे काएण, डसे श्रम' ही केष । सश्चैेप मे किसी
भी कार्य को करने से जो भी चेष्टा होती है, वही साधारण बोलचाल मे श्रम
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ল্জ্লার্তী ই।”” परन्तु श्रम' का यह बहुत ही व्यापक अर्थ हे ; अर्थशास्त्र मँ श्रम का
अर्थ डुतना व्यापक नहीं ই | লী. শত. গাঁ জট গাজা নী, “প্রক্স জলুভত্ব তা লু
शाशीेएिकि व मानशिक प्रयत्न है, जो प्रतिफल की প্রাঙ্গা से किया जाता है ।'' ड्थी
प्रकार, अर्थशास्त्री मारश्लि क अनुसार श्रम का अर्थ मनुष्य क आर्थिक कार्यों से है,
चाहे वे शारीएक हों या मानसिक । वीषु क मतानुसार परिश्रम (या अवा), जिसे
द्व्य द्वार मापा जा सकता है, श्रम कटहलाता हे ।
(व) भारतीय औद्योगिक श्रम की आर्थिक सामाजिक विशेषतायें :
भारत में औद्योगिक श्रमिक वर्ण कठा उदय पाथ्चात्य देशों की तुलना में, भिन्न
परिस्थितियों के अन्तर्णत हुआ है ; अत: उनकी कुछ उल्लेखनीय विशेषतायें हैं, जो
ङस प्रकार है
1. एकता का अभाव - भारतीय श्रमिक्छों मेँ उक्ता क्छ सर्वधा अभ्नाव ह । इसका
मूल कारण यह है कि वै देश के सभी भागों से और समाज के शसश्नी वर्णों से आए
हुऐ होते है । परिणामस्वरषप मजदूरों का वर्ण एक ईसा विचित्र यन्रुदाय बन भया है,
जिसमें भिन्न-भिन्न धर्मों के विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले, विभिन्न रहन-सहन <वं
शति-खिवाज के लोग होते हैँ । डन अनेक विभ्निन्नताघ्रीं के कारणा श्रमिक वर्ण में
सबठन नहं हे ।
2. अनियमित ठपस्थिति - <क्छ नियमित व शमर्पित श्रमिक उसे कहेंगे जो काम
पर बराबर बना रहता है तथा जिसने गांव सै अपने व्यापक सम्बन्ध तोड लिए हैं ।
1. शकक््शैना, एम.सी. (1996:5): श्रम शमस्याएँ एवं सामाजिक शुरक्षा २स्तोणी पवल्ीव्ठेशन, शिवाजी रेड, मेरठ
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