प्रमाणप्रमेयकलिका | Praman Pramey Kalika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
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No Information available about हीरावल्लभ शास्त्री दर्शन - Heeravallabh Shastri Darshan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ प्रमाणप्रसेयकलिका
और प्रमेय बया हैं ? जीवको दु:खोपरमरूप परमशान्ति कैसे प्राप्त हो
सकती है और उसका स्वरूप क्या है ? इत्यादि प्रश्नोंपर पूर्णतया प्रकाश
डालनेवाला श्षास्त्र ही दर्शनशास्त्र कहा जाता है। यद्यपि दृष्यते यत्
বহু दर्शनम्! इस व्युत्पत्तिसे सिद्ध 'दर्शन' शब्दका अर्थ दिखायी देनेबाला
ज्ञेय पदार्थ भी है, तथापि करण व्युत्पत्तिसे सिद्ध दर्शन! ही यहाँ अभिप्रेत है 1
दर्शनोका विभाजन : आस्तिक और नास्तिक विचार :
इस दर्शनशास्त्र और उसके प्रतिपाद्य तत्त्वोंका मनन एवं चिन्तन
करनेवाले मनोषी दार्शनिक कहें जाते हैं। यों तो समग्र बिश्वमें, किन्तु
विशेषतया भारतवर्षमें इन तत्त्वचिन्तक दार्शनिकोंकी परम्परा सदा रही
है । यह दार्शनिक परम्परा अनेक मेदोमे विभक्त मिलती है । कुष साम्प्र-
হাধিক হুল दार्शनिक-परम्पराको आस्तिक ओर नास्तिकके भेदसे दो भागों
में विभाजित करतेहँ ओर आस्तिकोके दर्शनोको आस्तिक दर्शन तथा
नास्तिकोके दर्शनोको नास्तिक दर्शन बताते ह । किन्तु उनका यह्
विभाजन सोपपत्तिक एवं संगत नहीं ठहरता । यदि “असिति परलोकविष-
यिणी मतियंस्य स॒ आस्तिकः, नास्ति परलोकविषयिणी मतिर्यस्य स
नास्तिकः इस प्रकार आस्तिक ओौर नास्तिक शनब्दोका अर्थं किया जाये तो
यह नहीं कहा जा सकता किं जंनदर्शन नास्तिक दर्शन है, भथोकि दस
दर्शने न्यायादिदर्शनोकी तरह “आत्मा परलोकगामी है, नित्य है, पुण्य-
पापादिका कर्चा-मोक्ता है' इत्यादि सिद्धान्त स्वीकृत ही नहीं, अपि तु जैन
मान्यतानुसार जैन लेखकों-द्वारा उसका पृष्कल प्रमाणोंसे समर्थन भी किया
गया है तथा जन तीथकरो-दारा दिया गया उसका उपदेशा भी अविच्छिन्न-
रूपेण अनादि काल्से चला आ रहा हं । पदि यह कहा जाये कि (आस्तिक
दर्शन वे हैं जो वेदको प्रमाण मानते है और नास्तिक दर्शन वे हैं जो उसे
प्रमाण स्वीकार नहीं करते-- नास्तिको वेदुनिन्दकः ।' तो यह परिभाषा
भी आस्तिक-नास्तिक दर्शनोंके निर्णयमें न सहायक है और न अव्यभि-
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