सन्त वाणी | Sant Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
संन्ने-वाशी
१३ |
सात सरग अपमान पर, भटकत है শি
खादिकं तो खोया गहीं, इसी महत्व में ट्रेंड ।
[ गरोबदास
ই
एक संप्रदा, सबद घट, एक द्वार सख-संच;
इक आत्मा सब मेव मो, दृजो जग-परपं॑च । { मौला
¶
अब हैं कातो बेर करों?
कहत पुकारि प्रभू निज मुख ते---
“जट-घट हों बिहरों ।”
१९
জাই ই, बन शोजन आदं !
सथं निवासी सदा भलेषा,
तोदी संग समभाई ।
युष्य-मध्य ज्यों दास बसत दे,
सुककर-मध्य ज्यों छाई;
से ही हरि षसौ निरन्तर,
धद ही खोजो भाई !
[ इरिदास
[ नानक
१३६
गनइसार अपराधी तेरे, माजि कां इम जहि,
दाद् देखया सोधि सब, तुस बिन कहिं न समाई ।
[ दादुदयाक्ष
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