श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि | Srimantrarajgunkalpamahodadhi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषयानुक्रमणिका] ११४१
विध ভৃপ্ততী पृ्ठतक
सर्वभय प्रणाशिनी विद्या < -* = ~ १३६ २४०
चतुर्थं फर्दायकः मन्न = = = ৭
सर्वरक्षा-मन्त्र ~ ` ~ = = १४०
सर्व सिद्धि-मन्त्र नरष + णाः कह ৪০৬ ००५ १४०
चलुर्थं फलदायक् मग्र = = = ० ই
कासप्रर-मन्त्र ९०० ००० ७७० ২১ ৯০৯ अ १४०
विरूफोरक शामक मस्त्र ` ~ ` = ४० ইহ
विभवश्षरी विद्या '** ४७० ०० বু ৪ १४१
स्ंखम्पत्ति दायक मन्त्र. “~ = ~> १४१
सर्वाम्युदय दतु परमेष्ठि मन्त्र “~ ~ ~ १४६
सर्वं कार्यं साधक मन्त्र ` = ` ~“ = + १४
इष्ड त्रण .शामक मन्त्र * **' २ ५००१ ^ + ०१५ १४९
उक्त सवं चिपय की भाषाटीका ॐ ** =“ १४६ १८
पञ्चम परिच्चेद १५४ २०४
( नवकार सन्त्र सम्बन्धी अ॑वश्यक विचार )
पश्चपरमेष्डि नमस्कारश्ब्दाथे ˆ ~ শা १५७
पांच परमेष्ठियों का नाम গল 0...
परमेष्ठी शब्द् का अर्थं शक भ्न ह টি
नव पदों का वर्णन श = ऋष्वः ह , द নুর ॥
उक्त नव पदों का अथं ५५ । अ ७० = १५५
धणमो अथवा नमो पद् के विषय मेँ विचार ৭ १५५
मनम; पद् का संद्ित्त সখ ५ ~ = ष १८६
* णमो अरिदंताणं” आदि तीन(प्रकार के पाठ. ७. १५०६
“गमी अरहंताणं? पाठ के विभिन्न अर्थ ৮৮৮ হদছ ५७
भणमो अरिहंताणं* पाठ के विभिन्न अर्थ न... 5 १५७ १५८
मरो अरुहंताणं” पाठके चिभिन्न भथ ~“ “` ` १५८
भगवान् को नमसरूकार करने का कारण *** তি न १८८
# भाषा टीका मे अनेक उपयोगी विपयों का भी चर्णन कियागया है।
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