श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि | Srimantrarajgunkalpamahodadhi

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Srimantrarajgunkalpamahodadhi  by जयदयाल शर्मा - Jaydayal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषयानुक्रमणिका] ११४१ विध ভৃপ্ততী पृ्ठतक सर्वभय प्रणाशिनी विद्या < -* = ~ १३६ २४० चतुर्थं फर्दायकः मन्न = = = ৭ सर्वरक्षा-मन्त्र ~ ` ~ = = १४० सर्व सिद्धि-मन्त्र नरष + णाः कह ৪০৬ ००५ १४० चलुर्थं फलदायक् मग्र = = = ० ই कासप्रर-मन्त्र ९०० ००० ७७० ২১ ৯০৯ अ १४० विरूफोरक शामक मस्त्र ` ~ ` = ४० ইহ विभवश्षरी विद्या '** ४७० ०० বু ৪ १४१ स्ंखम्पत्ति दायक मन्त्र. “~ = ~> १४१ सर्वाम्युदय दतु परमेष्ठि मन्त्र “~ ~ ~ १४६ सर्वं कार्यं साधक मन्त्र ` = ` ~“ = + १४ इष्ड त्रण .शामक मन्त्र * **' २ ५००१ ^ + ०१५ १४९ उक्त सवं चिपय की भाषाटीका ॐ ** =“ १४६ १८ पञ्चम परिच्चेद १५४ २०४ ( नवकार सन्त्र सम्बन्धी अ॑वश्यक विचार ) पश्चपरमेष्डि नमस्कारश्ब्दाथे ˆ ~ শা १५७ पांच परमेष्ठियों का नाम গল 0... परमेष्ठी शब्द्‌ का अर्थं शक भ्न ह টি नव पदों का वर्णन श = ऋष्वः ह , द নুর ॥ उक्त नव पदों का अथं ५५ । अ ७० = १५५ धणमो अथवा नमो पद्‌ के विषय मेँ विचार ৭ १५५ मनम; पद्‌ का संद्ित्त সখ ५ ~ = ष १८६ * णमो अरिदंताणं” आदि तीन(प्रकार के पाठ. ७. १५०६ “गमी अरहंताणं? पाठ के विभिन्न अर्थ ৮৮৮ হদছ ५७ भणमो अरिहंताणं* पाठ के विभिन्न अर्थ न... 5 १५७ १५८ मरो अरुहंताणं” पाठके चिभिन्न भथ ~“ “` ` १५८ भगवान्‌ को नमसरूकार करने का कारण *** তি न १८८ # भाषा टीका मे अनेक उपयोगी विपयों का भी चर्णन कियागया है।




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