अर्थशास्त्र के सिद्धान्त | Arthashastra Ke Siddhant

Arthashastra Ke Siddhant by विजयेन्द्रपाल सिंह - Vijayendrapal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० ] अर्थशास्त्र के सिद्धान्त भी एक बडी कठिनाई का सामना करना पडता है जो यह कि इस प्रकार विभाजित की हुई भौतिक झोर श्रभौतिक क्ियाश्रों का एक दूसरे से इतना घनिष्ठ सम्बन्ध देखने में प्राता है कि एक को दूसरे से पृथक करना ठीक होगा | यह निश्चय है कि रोविन्सत ऋर्सों के पास समय और शक्ति सीमित होंगे, जिस कारण यदि वह तोते से बात करने में श्रधिक समय लगा दे, तो उमप्तकी दूसरी क्षिय्ाद्नों में बाघा पड़ जायेगी । इसी प्रकार, पहले की क्रियाप्रों पर श्नघिक समय लगाने या प्रर्थ यह होगा कि दूसरे प्रकार की क्रियाश्रों के लिए समय का भश्रमाव हो जाय । स्पष्टतः भौतिक श्रौर प्रमौतिक क्ियायें एक दूँसरे पर निर्मर (0८9०10८7/) हैं तथा किसी एक के स्वभाव और महत्त्व को जानने के लिये दूसरे का अध्ययन करना श्रावश्यक है । (३ ) दोनों में भेद करने से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती, वरद्‌ भौतिक श्रौर अमभौतिक क्रियाप्रो के दीच तिणंय श्रथवा चुनाव (21००८) की समस्या ज्यो की त्यो बनी रहती है । मनुष्य की क्रियाप्रों का उतकी ग्रावश्यकता-पूर्ति तथा सुख पर प्रमाव जानने के लिए दोनो ही प्रवार की त्रियाग्रों का अध्ययन करना आवश्यक है । इसके बिता अर्थशास्त्र भ्रधूरा रहेगा সী आवश्यकता की पूर्ति के सभी पहलुप्नो तथा उनकी “समस्तता” (০:51) নটা দলা লতিল होगा । श्रतः यह प्रावश्यक है कि इस प्रकार के भेद पर ध्यान न दिया जाय, वयोकि इस भेद के बिता भी अर्थशास्त्र का भब्रष्ययन अधिक सच्चा एवं प्रधिक लाभदायक होगा । (४) श्रो० रोबिन्स का विचार है कि श्राधिक पिद्धान्तो के श्रध्ययन मे भौतिक श्रीर श्रमौतिक दोनो का मिध्रण है, मजदूरी का कोई भी ऐसा सिद्धान्त, जो उन सभी भुगतानों पर अ्यान नहीं देता है, जो भ्रभौतिक सेवाग्रों के लिये दिये जाते हैं श्रथवा भ्रभीतिक उद्देश्यो पर व्यय किये जाते हैं, सहतीय नही हो सकता है ।! इसी प्रकार के उन्होंने श्रोर भी श्रनेक उदाहरण अदतुत किये हैं। भ्रन्त में वे यहाँ तक कहते हैं, “अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किसी भी चीज से हो सकता है, किन्तु इतता निश्चय है कि इसका सम्बन्ध केवल भौतिक बल्याण के कार्यों से नही है (1 ) श्र्शास्त्र का कल्याण से कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए--रोबिन्स ने केवल भौतिक शब्द पर ही झाक्षेप नही किया, वरव्‌ वे तो ऐसा समभत्ते हैं कि श्रयंशास्त्र का कल्याण (51010) উ भी कोई सम्बन्ध नहीं रहना चाहिए। कल्याण के हृष्टिकोस से प्रर्थशास्त्र का अध्ययन करने मे कुछ विशेष फठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण स्वरूप--- ( १) चूंकि मादक पदार्थ माँग की तुलना में दुलम हैं, इसलिए उनका भी मुल्य होता है भ्रोर इस नाते उनका भी प्र्शास्त्र में श्रष्ययन होता चाद्ये, परन्तु उनका कल्याणा ते कोई सम्बन्ध नही है । (२) साथ ही स्वय कल्याण का विचार भी कोई “निश्चित” विचार नहीं है। समय, व्यक्ति, देश भरौर परिस्थितियों के श्रन्रृसार क्त्याण॒ सम्बन्धी विचारो तर भन्तर होता रहता है । उसे परिमाणात्मक रूप से (0०७०४४1ए८५) मापा नहीं जा सकता है (दब्य रूपी पैमाने द्वारा भी नहीं) | कल्याण का विचार इतना भस्पष्ट शोर अ्रनिश्चित है कि उसे लेकर किसी विज्ञान वा निर्माण नही किया जा सकता है । ৮8১ 00০০/5 ण॑ ४88९5 जता 87061 था 0095৩ ৪৮5 4000) আহা 10810 णिः 10002150121 5515 92 সতত 50৩06 00 ওযহাহতে0হ] 05 ৮০10 ৮০ 11010- 12215709৮10 : 4 5350) 0725 2121576 ৫72 57880807165 02200707010 5९1८९, 7. 6. 2. দিদা 18900010105 15 90005060৩41 1 15 पण 60105026% 10) 10८ ০ লে




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