शिक्षा में अहिंसक क्रान्ति | Shiksha Men Ahinsak Kranti

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Shiksha Men Ahinsak Kranti by काशीनाथ त्रिवेदी - Kaashinath Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिक्षा ७ ~---------------------- - ---- ~--------~ -- - -* - -~----- -- ~~ ----~*---~-----~- प्राथमिक शिक्षा को में सबसे ज्यादा महत्व देता हूँ । मेरे विचार मे, यह शिक्षा अंग्रेज़ी को छोड़कर और विषयों में आजकल की मैट्रिक तक होनी चाहिए । अगर कॉलेज के सब ग्रैजुएट अपना पढ़ा-लिखा एकाएक भूछ जाये, और इन कुछ लाख ग्रैजुएटों की याददाइत के यों एकाएक ब्रेकार हो जाने से देश का जो नुकसान हो, उसे एक पलड़े पर रखिये, और दूसरी ओर उस नुकसान को राखिये, जो पेंतीस करोड़ জী पुरुषों के अशानान्थकार में घिरे रहने से आज भी हो रहा है, तो साफ माछम होगा कि दूसरे नुकसान के सासने पहला कोई चीज़ नहीं है। देश में निरक्षतं और अनपढ़ों की जो संख्या बताई जाती है, उसके आँकड़ों से हम छाखों गाँवों में फेले हुए, घोरतम अज्ञान का परा अनुमान नही कर सक्ते | अगर मेरा वस चले, तो में कॉछज की शिक्षा को जड़े-मूछ से बदक दूँ, और देश की आवश्यकताओं के साथ उसका सम्बन्ध जोड़ दूँ मे चाहता हूं कि मिकेनिकल और सिविल इंजीनियरों के लिए उपाधि परीक्षाये रकक्‍्खी जाये, और भिन्न-भिन्न कल- कारखानों के साथ उनका सम्बन्ध स्थापित कर दिया जाय। इन कारखानों को जितने औजुए्टों की ज़रूरत हो, उतनों को ये अपने ही खर्च से ताल्गीम दिलाकर तैयार कर छें। उदाहरण के लिए, ताता कम्पनी से यह आशा की जाय, कि जितने इंजीनियरों की उसे ज़रूरत हये, उनो को तैयार करने के सिर वह राज्य की निगरानी में एक कॉलेज का संचालन करे | इसी तरह मिलू-मालिकां के मण्डल भी आपस में मिलकर अपनी ज़रूरत के ग्रेजुएटों को तैयार करने के लिए. एक कॉलेज का संचालन करें। दूसरे अनेक उद्यौग- धन्धों के लिए भी यही किया जाय । व्यापार के लिए भी एक कॉलेज हो। इसके बाद आईस, मेडिकल और कृपि-कॉलेज रह जाति हैं ! आज कई “आस! कलिज अपने पैरों खड़े होकर चल रहे हैं | इसलिए राज्य अपनी ओर से आस! कॉलिज चल्मना छोड़ दे। मेडिकल कॉलेजों को प्रमाणित अस्पतालों के साथ जोड़ दिया जाय। चूँकि ऐसे कॉलेज धनिक-समाज में छोकप्रिय हैं, इसलिए. उससे यह आया रक्खी जाय, कि बे इनके संचालन का भार स्ेच्छा से अपने ऊपर ले ले | कृपि-कॉलेज तो अपने नाम को तभी साथक कर सकते हैं, जब वे स्वावलम्बी हों | मुझे कृपि-कॉलिजों से निकले हुए. अनेक ग्रैजुएटों का बड़ा कडुआ अनुभव हुआ है । उनका शान बहुत ही उथला और व्याब- हारिक अनुमव नाम-मात्र का होता है। लेकिन अगर उन्हें स्वावलम्बी और देश की ज़रूरतें पूरी करनेवाले फार्मों पर उम्मीदवारी करनी पढ़े, तो डिग्री पाने के बाद,




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