षट्खंडागम भाग - 5 | Shatkhandagam Bhag - 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
485
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धवलाका गणितशास्र
( पुस्तक ४ में प्रकाशित डा. अवधेश नारायण सिंह,
लखनऊ यूनीवर्सिटी, के लेखका अनुवाद )
यह विदित हो चुका है कि भारतवर्षमें गणित- अंकगणित, बीजगणित, क्षेत्रमिति
आदिका अध्ययन अति प्राचीन कालछमें किया जाता था। इस बातका भी अच्छी तरद्द पता
चल गया है कि प्राचीन भारतत्रपीय गणितज्ञोने गणितशात्रमें ठोस आर सारगर्भित उन्नति की
थी | यथायंतः अर्वांचीन अंक्गणित और बीजगणितके जन्मदाता वे ही ये । हमें यह सोचनेका
अभ्यास होगया है कि भारतवर्षकी विशाल जनसंख्यामेंसे केवल हिंदुओंने द्वी गणितका अध्ययन
किया, ओर उन्हे दी इस विपये रुचि थी, ओर मारतवर्षीय जनसंख्याके अन्य भागों, जैसे
क्षि बौद्ध व जैनोंने, उसपर विशेष ध्यान नदी दिया । विद्ानोके इस मतका कारण यह है कि
अभी अभी तक बौद्ध वा जैन गणितज्ञोद्ारा ङिति गये कोई गणितश्चाखके भ्रन्थ ज्ञात नीं हुए
थे। किन्तु जैनियोंके आगमग्रन्थोंके अध्ययनसे प्रकट होता है कि गणितशात्रका जैनियोंमें मी
खूब आदर था । यथार्थतः गणित ओर ्योतिष विद्याका ज्ञान जैन सुनिर्योकी एक मुख्य
साधना समझी जाती थी ।
জন্ন হুম यह विदित हो चुका दे कि जैनियोंकी गणितशात्रकी एक शाखा दक्षिण
भारतमें थी, और इस शाखाका कमसे कम एक ग्रन्थ, महावीराचाये-कृत गणितसास्संग्रदद, उस
समयी अन्य उपद्र कृतियोंकी अपेक्षा अनेक बातोंमें श्रेष्ठ है। महावीराचायंकी रचना
सन् ८५० की है | उनका यह ग्रन्थ सामान्य रूपरेखामे बद्मगुप्त, श्रीधराचायं, भास्कर और अन्य
हिन्द गणितज्ञके ग्रन्योके समान हेते हुए भी विप बातें उनसे प्रणतः भिन्न है । उदाहणाथ-
गणितसारसग्रहके प्रश्न (71001608) प्रायः समी दूरे प्न्य प्रश्नेति भिन हँ ।
वर्तैमानकालमें उपलब्ध गणितशात्रसंबधी साहित्यके आधारपरसे हम यद्द कट्ट सकते
हैं कि गणितशात्रकी महत्वपूर्ण शाखाएं पाटलिपुत्र (पटना), उज्जैन, मैसूर, मलावार और
संभबतः बनारस, तक्षशिल्ा और कुछ अन्य स्थानोंमें उन्नतिशीक थीं। जब तक आगे प्रमाण
प्राप्त न हों, तब तक यह निश्वयपूवैक नही कहा जा सकता कि इन शाखा परस्पर क्या
१ देखो-मगवती सूत्र, अमयदेव पूरिकी यका सहित, भ्देाणाकी आगमोदय सप्रिति हारा प्रकाशित,
१९१९, सूत्र ९० । जेकोबी कृत उत्तराध्यन सूत्रका अग्रेजी जुवाद, ओक्सिफोडं १८९५; अध्याय ७, ८, ३८.
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