जिनवाणी : जैनागम साहित्य विशेषांक | Jinvani - Jainagam-sahitya-visheshank

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Jinvani -  Jainagam-sahitya-visheshank by धर्मचंद जैन - Dharmchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विभिल्लतल-न्नम्प्रदायों मे माल्य आगम वर्तमान में जैन धर्म की प्रमुख चार सम्प्रदाये हैं-- दिगम्बर, रवेताम्बर-मूर्तिपूजक, स्थानकुञ्ञासी एवं तेरापन्य । इनमें श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के अनुसार डपॉजथिवा (४ आगम मान्य हैं। स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय-ई ई गमो को मान्यता देती है। दिगम्बर सम्प्रदाय इनमें से किसी भी आगम को मान्य नहीं करती, उसके अनुसार षट्खण्डागम, कसायपाहुड आदि ग्रन्थ ही आगम हैं। स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्नदायों द्वारा मान्य ३२ आजम इन दोनों सम्प्रदायों में सम्प्रति १५ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, ४ छेदसूत्र एवं ९ आवश्यक सूत्र मिलाकर ३२ आगम स्वीकृत हैं। इनके हिन्दी एवं प्राकृत भाषा के नाम नीचे दिए जा रहे हैं। कोष्ठकवर्ती नाम प्राकृतभाषा में हैं। 11 अंग . आचारांग (आयारो) . सूत्रकृतांग (सूयगडो) . स्थानांग ভোঢা) . समवायांग (समवाओ) . भगवती ^ व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवई ^ वियाहपण्णत्ती) . ज्ञाताधर्मकथा (णायाधम्मकहाओो) . उपासकदणा (उवाखगदसाओ) . अन्तकूदूदशा(अंत्गडदसाओ) . अनुत्तरौपपातिकदशा (अनुत्तरोववाइयदसाओ) १० प्रश्नव्याकरण (पण्हावागरणाईं) १३२ . विपाकसूत्र (विवागसुयं) नोट- दृष्टिवाद नामक १२ वँ अंग उपलब्ध नहीं है। इसका उल्लेख नन्दौीसूत्र , समवायांग एवं स्थानांग सूत्र में मिलता है। - 12 उपांग २0 (४ @ ^ ০০:০৮:40 40৮9 . औपपातिक (उववाइयं) . राजप्रश्नीय (रायपसेणइज्जं) . जीवाजीवाभिगम(जीवाजीवाभिगम) . प्रज्ञापना (पण्णवणा) - जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति(जम्बुद्दीवपण्णत्ती) . चन्द्रप्रज्ञप्ति (चंटपण्णत्ती) . सूर्यप्रज्ञप्ति (सूरपण्णत्ती) . निरयावक्तिका(निरयावलियाओ) . कल्पावतंसिका (कप्पवडंसियाओ) € ^ ^ ० ५ ~ ~ 0 (७




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