सचित्र श्री लीला सागर | Sachitr Shri Leela Sagar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(द)
हं चुन कर श्री जोगजीतजों ने श्रवसर जान कर यहं
সাহলা कौः-- `
हाथ जोड़ में रन करयो । श्री शुक्रदेव गुरु तुम्हें दिखायो ।।
तुप हमरे समरथ गुरुदेवा | सोई दिखाओ हमको भेवा ॥
होव शुदि कटि मृ द जो नैना। खोलियो जब मैं मा्खू बैना॥
अमरलोऊ ही ध्यान करायों। रास मंडल को चित में लायो॥
तब्र मो शिर पर हाथ घराही। रास मंडल का रूप लहा ही ॥
दोहा- चौंसठ खम्भा मध्य ही, निरख्यो अख्भु त स्याल ।
आसपास * निरतें सखी, मध्य लाइली लाल ||
अद्भू त लीला हिये निहारी | ता छवि को ऋछु अन्त न परी ॥
शारद् कहि न सके अहिराई। सो छत्रि श्री महाराज दिखाई॥
श्री शुक्र व भागोत बखानी । तिनहू कहि संक्षेप खानी ॥
पृथ्वी के. कशिका गिन आवे। ता छवि को सो अंत न पाये ॥
तान, मान, गान, गति जु जैसी | जग में कहा बखानू ऐसी ॥
>लीलासागर पृष्ठ ३२१
इस प्रकार थ्रो जोगजोतजो ने सदगुरु कृपा से अमरलोक*
भ्रत्वण्ड धाम की अद्भुत रास लीला के दर्शनों का सोमाग्य प्राप्त
किया। जब झापके गुदमाइयों ने झापसे पुछा कि आ्रापको निविकल्प
समाधि सिद्ध है तथा तुरोय पद का सुख प्राप्त है श्रीर श्रापते सगवान्
व 1 मा
+नित्य दुन्दावन को ही श्री चरणदासजों महाराज ने प्रमरलोक
के नाम से कहा है ।
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