गृहस्थी | Grihasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गहस्थी 17 दूसरी तरफ श्याम बाजार के इलाको को छोड कर बाकी का इलाका बिलवुल बीहड गाव था। उज्जड गाव का नास सुनते ही शशि बाबू भल्ता उठे । बोले, 'वस । बस । बात का बतगड बनाने से कुछ भी होने- जाने का नही। मकान नही बनेगा । बस । और कुछ ?? हालाकि गुस्सा अधिक देर तक टिका नहीं। मकान भी नहीं बना । पर रुपए खुदरा खच कै पख लगाकर उडने लगे । कही बुछ पैसा का भरोसा रहता है ता जरूरी सामान की लिस्ट भी बढती जाती है। जिन जरूरता का पहले कभी पुरा नही किया जाता था, जिह करने पर ठीव रहता, परन करने पर भी कुछ बनता बिगडता नहीं, ऐसे काम भी अब अपरिहाय बन गए थे । शशि बाबू सभालने की कोशिश तो करते पर रेत के वाध वे समान सव कुछ ह्‌ जाता । मदाकिनी ओर सभी लडके-लडकी एक तरफ । दूसरी तरफ शशि बाबू अकेले थे । धर के मालिक और मालकिन दोनो का दष्टि कांण जलग-अलग़ था । मालिक की इच्छा थी कि जितनी चादर थी उसी मे उनका परिवार अच्छी तरह गुजर बसर कर ले, पर मालकिन चाहती थी, दस जनो के बीच एक बनकर मान सम्मान के साथ जीना। दोना के जीने के मानदड अगर अलग-अल्लग हा तो सघप भी अनिवाय था। सघपें तो हमेशा से ही होता जाया था और उम्र के साथ-साथ बढा भी था। सधप का चेहरा वहुत वडा तो नही था, पर छोटे मोटे विरोधा मे पल परल कर वह बड़े रूप मे सामने आ जाता । सुबह की डाक से आयी एक चिटठी को लेकर आज भी दोनों के बीच खठपट हां गईं। बहू चिटठी तिमत्रण पन्र था पर विवाह का नहीं, धाद्ध का। बडी लडकी कमला के ससुर काफी दिनो से बीमार चल रहे थे, अब जाकर उह परलोज प्राप्त हुआ था। उसी अवसर पर सामान वगरह भेजने की बात को लेकर पति पत्नी मे खटपट लग गई। मदाविनी वोली, जवार वे पिता का देहात हो गया है । हम लोगा बी तरफ से जवाई, नाति नाततिया भौर समयिन के लिये कपडे, फल, मिठाई, मक्खन, अनाज जादि ता भेजना ही पडेगा। इसके अलावा श्राद्ध




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