जैन सिद्धांत भास्कर के नियम भाग - 6 | Jain-sidhant-bhaskar Ke Niyam Bhag - 6
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किरण ४ ] জলা ण्व यहा की श्रीमोम्सट-सूर्ति २११
मराठा मापाश्नो का उट्गम क्रमश शद्ध मागधो श्चौर महाराष्ट्री प्राकृत से हुआ प्रकट है और
यद् भी िदरित है कि मराठी, कोङ्कणी एव क्नड सापायों কা হা प्िनिमय पहले प्रावर होता
रहा है। क्योंकि इन मापा मापी देश के लोगों का पारस्परिक विशेष सम्बंध था। अब
पोइणी मापा म एक शद गोमटों' या 'गोम्मटो! मिलता है और यह सस्कृत के 'ममथों
शन्द का ही सपान्तर हे 1 यह् श्मयापि सुन्दर अथे म हां व्ययहत है। फोइणी समौपा का
गह् शब्द् मयी मापा में पहुच कर कतड सापा मे प्रयेश कर गया हो---बोई आये नहीं ।
हुछ मी हो, यह स्पष्ट हे कि गोम्मट सस्द्त के ममथ शरः का तद़बरूप है और অন
कामनेय का द्योतर हैं।
्ीयुत प्रो के° जी० शुन्दनगार प्म ८० श्ारि ण्व दो गदान् इसस सहमत नदा हे ।
यद्वि णन्दनगारजौ का 'क्शोटऊसाहित्य परिपत्पत्रिका मांग २०९1], पृष्ठ ३०४--३०५ में
इसके सम्ब-य में एक लेस प्रकाशित मी दो चुका हैं। पर श्रीयुत गोपिट पे अपने इसी
मत फो इसी किरण म श्चन्यत प्रफाशित अपने अग्रे जी लख में समर्थन फरत है । श्रीयुत मित्रगर
ए० एन० उपाध्ये और श्रीयुत के जी० झुन्दनगार आदि उिद्धानों को इस पर सप्रमाण
विशेष प्रकाश डालना चाहिये।
अन प्रश्न हो सकता हैं कि वाही की पिशा मूर्ति सममथ या कामेत क्या फहतायी।
जैनघमौनुमार वाहुयली स युग क प्रथम कामन्व माने गये ह। श्सी लिये श्रएयेनोन मेँ
या श्रन्यत्र खापिन उनकी विशाल मूर्तया उसमे (मम वे) तद्धयरूप शोम्मद' नाम से
प्रख्यात हुई । बल्कि बाद मृत्िस्थापना ये इस पुण्यस्य फी पमि स्मृति वौ जीभित सपने फे
पिये श्राचार्य श्रीनिमिचन्द्रजी ने स भूति के सस्थापर चाउुएडराय का उल्लस 'गोम्मत्रायः
के नाम से ही क्या और इस नामज़ो प्रस्याति “न के ये दी चादुए-सय क तिये स्वे गये
अपने 'पश्चसग्रह! ध्रथ का नाम उद्दोंने 'गोम्मटसार' रस दिया।के
जैनियों म वाहुबली फी मूर्ति की उपासना कैसे प्रचातित हुइ यह भी एफ प्रश्न उठ सडा
दोता है। इसका प्रम ण्व प्रधान कारण यद् टं कि इस अयसर्पिणी-काल स सय से प्रथम
अधीत् अपने श्रद्धे य पिता आएि तीर्थक्षुर घृषम स्वामी स भी पहल मोक्ष जाने ধার निय पीर
वाहुयनी दी थे। माद्य द्वोता है कि “स युग क आदि म से प्रथम सुक्तिपथ प्रदर्शक के
नाते आपसी पूजा, प्रतिष्ठा आठि जैनियां म सत्मान्य रूप स प्रचलित ह३1 दूसरा कारण
यद मी हो मक्ता है कि बाहुतली के अपूर्त त्याग, अचोगिस आमनिमद् और पैजनघुप्रेम आदि
असाधाएण एवं अमासुपिक गुणा ने समेप्रथम अपने थ* भाई सम्रात् भरत को इन्ह पूजन यो
बाध्य रिया होगा, बाद भरत वा ही अउुप्रण औरो न ना।
# विशेष विचाख भास्कर साग ४, किरण २ मे प्रकाशित जायुत ग्राविद्द ঘা এান্রাপ্মলা কা
मूर्ति गाम्मर क्यों कदलाती दे १ शाप्क लेंस टय 1
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