नेताजी जियाउद्दीन के रूप में | Netaji Jaiyauddin Ke Roop Men

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३.० ) यह .कहानी मेने ७ मई; १९४५ को पूरी करके ऊपर की चन्द प्तरें भी तभी लिख ली थीं ),लेकिन, तब मेरा इरादा उसको शाया करने या कराने का ने था। लेकिन, जेल से रिहा होने पर “हिन्दुस्तान ठाइम्स' के पेशावर के नामातिगार 'ने इसको: शाया कराने'के लिए पुझ प्र जोर दिया । सारा किस्सा सिलसिलेवार 'हिन्दुस्तान टाइम्स में ,छप चुका हे । शुरू में इरादा यह था कि इसको “हिन्दुस्तान टाइम्स के. साथ- साय हिन्दुस्तान नई दिल्‍ली, लीडर और “भारत' इलाहाबाद और 'सर्चछाइट” पटना में ही शायां कराया जाय। बाद में लातादाद अखबारों ने इसको छापने की रुवाहिश जाहिर की और इजाजत भी मांगी । कुछ ने विना इजाजत किये गैर कानूनी तरीके से छापना भी शुरू कर दिया। इस पर मेने हिन्दुस्तान ठाइम्स' के सम्पादक की सलाह मान कर उनको इसे छापने की इजाजत दे दी. और उसके छिए एक खास रकम मुकरिर कर दी.। इस रकम का माधा हिस्सा आजाद हिन्द फौज की पैरवी के फण्ड में दिया जायगा। इनको किताबी शक्ल में छापने का हक भेरे पास ही था। अपने मुल्क की सभी -जवातों में इसे शाया करने के लिए मेरे पास सेकड़ों पत्र और तार आये है। उन पर गौर करके करीव-करीबव हर जबान में इसे किताब की शक्ल “में छापने का, इन्तजाम हो गया हैं| इन किताबों पर उनके शाया करने वाले, मुझे पुस्तक की कीमत प्र ३० फी सदी रायल्टी दे रहे हैं। इसमें से मेने पहिले दी हजार के एडीदान पर ढाई फी सदी आजाद हिन्द फौज पैरवी फण्ड' में और दस फी सदी अपने सूबे के गान्वी.खां अब्दुल गकफार खां को दे देने का फैसला किया है ।वाद के एडीशनों पर आजाद हिन्द फौज के प रची फण्ड में ढाई फीसदी और सरहदी गान्धी को पांच फी सदी दिया जायगा)




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