वीर कवि दशमेश | Beer Kavi Dashmesh

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Beer Kavi Dashmesh by जयभगवान गोयल - Jaibhagwan Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दैत्यो का वध करन, कृष्ण श्रौर गोपिझो क आकषण, प्रम, मिलन और झभिसार तथा गोपियों की आसकित, मोह, विलास, उल्लास, दीप्ति, गये, लज्जा, ईर्ष्या, जडता, उनकी विरह॒गत्त, अधीरता, विह्वलता, व्याकूलता, आतुरता, वेदता, उन्‍्माद आदि का भी संजीव चित्रण किया गया, है । इन वर्णनों में कहीं कह्ढी अश्लीलता भी आ गई है । परन्तु कृष्ण-भकत कवियों की भांति यहा इन रस-लीलाझो को इतना अधिक महत्व नही दिया गया है कि यह प्रतीत हो कि यह लीला गान करना ही कवि का उद्देश्य है । ुद्ध-प्रवन्ध' इस रचना का मुख्य भाग है, जिससे कवि ने कृष्ण के जरासध, शिशुपाल आदि के साथ ग्रनेक युद्धो का विस्तृत वर्णन किया है! सम्भवत, हिन्दी के कष्ण काव्म मे यह पहला ग्रंथ है, जिसमे कृष्ण के युद्धो का इतनी विशदता और विस्तार से वणेन किया गया है । सम्भवतः पहली बार इसी रचना में कृष्ण एक असुर-संहारक, धर्म-सस्थापक, धर्मवीर एवं युद्ध-बीर लोक-रक्षक के रूप में चित्रित हुए है। कृष्ण के इतने विशद, व्यापक चरित्र को लेकर लिखा जाने वाला भी सम्भवतः यह्‌ पहला और श्रकेला प्रबन्ध है। त्रज के $ृष्ण-भक्त-कवियों ने तो उसके रमेश्वर रूपम की रसिक त्रीलाश्नौ मे ही रस लिया है, वें उनकी युद्धवीरता से उत्साहित नहीं हुए। ृष्णावतार' की रचना युद्धोत्साह प्राप्त करने के लिये ही की गई थी। कवि ने अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए एक स्थान पर लिखा है - अवबर वासना नाहि प्रम, धरम जुद्ध की चाइ (२४६१ क्ृष्णावतार ) खेद है कि यह युद्ध-प्रवत्ध भ्रमी तक हिन्दी समीक्षकों द्वारा प्रायः उपेक्षित ही रहा है। दशाम ग्रंथ' पर कुछ शोध प्रबन्ध लिखे जाने परे भी इसका समुचित मूल्यांकन नही हुआ । इस रचना क द्वारा कवि कृष्ण-भविति का प्रचार करना नही चाहता ! वरन्‌ कस, जरासध आदि असुर उसके लिए अत्याचारी मुगल-शासको के प्रतीक थे। वे दिखाना चाहते थे कि उनके विरुद्ध वे उसी प्रकार से लड़ रहे है, जैसे कृष्ण असुरो के साथ लड़े थे। अपने अनुयायियों को इस धर्मयुद्ध के लिए उत्साहित करने के लिए ही वें कृष्ण की वीर कथाएं सुनातें या मुनवाते थे । छइष्णाबतार' में कृष्ण के जरासंध एवं शिशुपाल झ्रादि के साथ अनेक 12




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