गांधीवादी विचार - दर्शन के परिप्रेक्ष्य में हरिकृष्ण प्रेमी के नाटकों का अध्ययन | Gandhivadi Vichar - Darshan Ke Pariprekshya Men Harikrishn Premi Ke Natakon Ka Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गॉधी जी को ईशावास्योपनिषद के प्रथम श्लोक ने प्रभावित किया, जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने ट्रष्टीशिप (न्यासिता) सिद्धान्त को जन्म दिया- ईशावास्यमिदं सर्वयक्कित्रचम्‌ जगत्यांजगत तेन त्यक्तेन भत्रजीथा भा गृधः कस्यस्िद्धनम्‌ | अर्थात-इस संसार भँ जो कुछ हे वह ईश्वर का हे-यह मानकर ईश्वर द्वारा उच्छिष्ट जो प्राप्त हो हम उसी काभोग करं ओर किसी के धन की लालसा न रखें। माता पुतलीबाई का प्रभाव गॉधी जी पर प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दोनों रुपों में प्रभाव पड़ा। वे बड़ी साध्वी तथा धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। पूजा पाठ किये बिना कभी भी भोजन नहीं करतीं थीं। रोज हवेली दर्शन के लिए जाया करती थीं। चातुर्मास्य का व्रत वे हमेशा करती थीं। जिसका उल्लेख उन्होने अपनी आत्मकथा मेँ किया है | “मेरे मन पर यह छाप है कि माता जी साध्वी स्त्री शी, बडी भावुक पूजापाठ किये बिना कभी भोजन नहीं करतीं थीं, हवेली (वेष्ठव मन्दिर) पर रोज जाती थीं। मैंने जब से होश सम्भाला याद नहीं पड़ता कि उन्होंने चार्तुमास्य का व्रत कभी... छोड़ा हो| कठिन से कठिनं व्रत लेती ओर उसे दृढता से पूरा करतीं । बीमार पड़ जाने पर भी कभी लिये हुए व्रत को नहीं छोड़ती। एक बार की बात मुझे याद है कि उन्होंने चन्द्रायण व्रत आरम्भ किया था। उसमें बीमार पड़ गई, पर व्रत न छोड़ा। चातुर्मास्य में एक समय के भोजन का व्रत तो उनके लिए साधारण सी बात थी। इतने से न सन्तोष मान कर एक चौमासे में उन्होंने एक दिन बीच में एक दिन छोड़ कर भोजन करने का नियम बना लिया था। लगातार दो-तीन उपवास उनके लिए मामूली सी बात थी। एक चौमासे में उन्होंने सूर्य नारायण के दर्शन करने के बाद ही भोजन करने का व्रत लिया. था। उस चौमासे में हम बच्चे बादलों की ओर देखते ही रहते कि कब सूर्य के दर्शन हो और कब माँ भोजन करें। यह तो सभी जानते है कि चौमासे में सूर्य दर्शन दुर्लभ ते हैं। मुझे ऐसे दिन भी याद हैं कि जब सूर्य को हम देखते और चिल्लाते मॉ-माँ सूर्य निकला। माँ जल्दी-जल्दी आती, तब तक सूर्य भाग जाता। वह यह कहते हुए. लोट जाती कोई बात नहीं आज खाना वदा ही नहीं हे! ऐसी धर्म निष्ठा माता का प्रभाव गॉधी जी पर पड़ा। जब गाँधी जी विदेश गये, विदेश जाने से पहले उन्होंने माँ से प्रतिज्ञा की थी कि मैं मॉस, मद्य तथा... स्त्री का सेवन नहीं करूँगा | माँ के सामने ली गयी इस प्रतिज्ञा ने विदेश में भी जहाँ. उनकी माँ उनके साथ नहीं थी परोक्ष रूप में प्रभावित किया। गाँधी जी के शब्दों... ममो बोली मुझे तेरा विश्वास है। पर दूर देश में कैसा होगा? मेरी तो अक्ल काम > नही करती | मैं बेचर जी स्वामी से पूछँगी। बेचर जी स्वामी पहले मोढ़ बनिये थे फिर পপ লা সপ 2. आत्मकथा-(सत्य के प्रयोग) : गाँधी जी, भाग-1, अध्याय-1, पृ0-16




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