श्रेष्ठ वैदिक कथाएं | Shreshtha Vaidik Kathayae

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Shreshtha Vaidik Kathayae by हरि भारद्वाज -Hari Bhardwaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इंद्र को संदेह हुआ। बह गज्ञशाला मेँ भंडार का निरीक्षण करने चला गया। उसके आएचर्म 'क्ा ठिक्काना न रहा- भंडार खाली पड़ा था यह क्या? कहां गया देवग्णों छत अर्जित इतना अस्न, शस्त्र, चर्म, आहार, फल्‌? सब कुछ कहां चला गया? इंद्र में पुरोहित विश्वरूप त्रिशिरा से पूछा। जिशिरा मे कषा, सव कुच यहीं तो बांट दिया जाता है- देवों में। देव कमाते ही कितना हैं? सत्र निकस्मे और आलसी हैं। खामे के पेट, करने के कुछ नहीं।'' सुनकर ईद चौंक गया। विश्वरूप कुर वैस हौ भाषा बोल रहा है जैसी प्राय: अखुए जाति के लोग देखों के बारे नें कोलते हैं; उसका सरदिह पक्क हौ गया। विश्वकप वस्तुतः है कौन? अद्वितीय कलाकार त्वष्य का पुत्र। उस त्वष्टा का, जो देवों पर जान देता हैं! लेकिन उप्चक्की मां असुर्कन्या है, जिप्तका मोह अब भी अछ्ुर्रों में है। असुरयों ने उसे ऐसी ही सोख देकर भना है कि वहे देवे पे त्वष्टा की पत्नौ उनका एहे किंतु सदा अछुरें को भलाई के नार ५ सोचे। ओर यदि वह किसी तरह अपने पति त्वष्टा के विचार बदलकर उसे अक्रौ कै पक्ष मे करदे तौ सारी अस्रुर-जाति उसका उपकार कभी नहीं भूलेगी। त्वष्या ही उसके प्रभाव में नहीं आया...किंतु विश्वरूप...लगवा है बह अवश्य अपनी असुस्बाला मां से प्रभावित हैं। तभी तो ऐसी भाषा बोल रहा है! উল विश्वरूष पर कमर रखने ज्लगा। और एक गत... ङ नै दखा-देर्वी कौ चञ्ञशरला की ओर से अरौ की कटु गाड़ियां भाल से 'लदी आ रहीौ हैं। इनमें अवश्व बढ़ीं सामग्री लदी हैं जी देवगण परिश्रम मे कमार लतति दै. 18, -8. ।




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