शैवमत : सिध्दान्त और साधना | Shaivmat Sidhhant Aur Sadhana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शवभत -उद शव व विकास ६
इन आठ तामों में चार नाम विनाशकारी शक्ति के बोधक উ- হর, दार्व, उग्र
एवं अश्नि, तथा चार नाम झंद्र के कल्याणकारी झक्ति के परिचायक हैं- भव,
परशुवति, महादेव तथा इंशान ।
अथववेद एवं ज्ञाह्मण ब्रंथों में ताम में समावता होते हुए भी उनके
पीछे एक मौलिक अन्तर दिखलाई पड़ता है। प्रकृति के भयंकर एवं विनाशकारी
तथा कह्माणकारी और दयालु रूपों से अथर्ववेद में उल्लिखित ভাত विभिन्न
देवों की मान्यता का उदय हुआ, परच्तु दोनों ब्राह्मणों (दातपथ' एवं
कौयीतर्कि में ध्मस्त नाम एक ही देव के साम है ।
गृह्य बूत्र काल में भी उद्र उम्र देवता बने रहते है उर भाँति-भाँति
प्रकार से प्रसंच किया जाता है। अधिकाँद गह्म सूत्रों में शुलगव नामक एक
यज्ञ का परिचय मिछवा है । यज्ञ में रुद्र को प्रसन्न करने के लिए ग्राम की सीमा
से बाहर वृषभ की बलि देने का विधान हैं ।* यह विधान अमांगलिक হস্ত
की ओर पंकेत करता है | चंद्र के बारह अयबा छह विशेष नामों अथवा किसी
एक नाम को उच्चरित करते हये वपा को अग्नि में डालना चाहिए । इनमें
सात ताम वे ही हैं जिवक्ा उल्डेंख अथवृवेद में मिछता है। शंष पांच नाम ये
हैं हर, मृड, शिव, भीम एवं शंकर । यह झूछगव यज्ञ पशुओं के रोगों से बचाने
के लिए गोश्याला में किया जाता चाहिए 1? आहुति देने के नियमों के अन्तर्गत
महत्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ देवताओं के साथ उनकी पिनियौ -दन्द्राणी,
रुद्राणी बर्वाँणी, भवानी आदि के लिए भी आहुति का विधान है । प्रत्येक देवी
को भवस्थ देवस्य पत्लये स्वाहा आदि मंत्रों का उच्चारण करते हुए आहुतियाँ
देने की बात कही गई है, उनके बलग-अलरूग नायें छेने का विधान नहीं किया
गमा दै
~ भस जार
द इत पास्मृण
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