श्री प्रश्नं व्याकरण सूत्रं | Shri Prashn Vyakaran Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হ্‌ म युक्ति भी अगम से विमुख नदीं जाती ' एक-दूसरे कां श्रनुगभन करते हुए आगम ` शरौर युक्तिये दोनों सत्य के ज्ञान को स्थिर करने में समर्थ होते हैं। जैसे कि-- जुत्तीए च्रचिरुद्रौ सद्ागमो, सावि तय विरुद्धत्ति | इय अण्णोण्णानुगयं, उभय॑ . पडिवत्ति द्ेउत्ति | पंचाशक ॥५४॥ টি इस प्रकार का गुणसम्पन्न आगम वीतराग वचन हौ हो सकते है अन्य नहीं | शासत्र का नाम प्रश्नव्याकरणानि--परहावागरणाइईं या पण्डावागरण दसा है।कःदी ओर . समचायाज्ञ सूत्र में परहावागरणाईं नाम रक्खा गया है| प्रश्न का अर्थ पूछना ओर... ठप्राकरण का श्र्थं उत्तर है । बहुतसे भरभोत्तर होने से इसका नाम प्रभ व्याकरणानि फेसा बहुवचनान्त पद्‌ रक्खा गया । जैसा कि टीकाकार अभयदेव सूरि ने लिखा ---- है -प्रभः प्रतीतः, तननिवंचनं-व्याकरणएम्‌। प्रस्ानाच्च उ्याकरणानाच्च ` योगात्‌ प्र करणानि, (सम० ९४५) नन्दी च्मौर प्रश्नव्याकरण के टीकाकार ने भी इसी ' को साना हे;। | दूसरा नाम है पर्दा वागरणदसा, इसका प्रयोग स्थानाद्ग मेँ मिलता है! स्थानाङ् के दशम स्थानः मे कहा है किं पर्दावागरण दसा के दश अध्ययन हैं, “टीकाकार भी इसो नाम से अर्थ करते हैं, जैसे-प्रश्न व्याकरण दशा इह्दोक्त रूपा न। दोनों नाम प्राचीन हैं फिर भी ज्ञात होता है कि प्रश्त व्याकरण दशा यह লাম গহন व्याकरणानि से कम प्रसिद्ध था । कारण भगवती, ससवायांग श्रौर नन्दी में प्रश्न ` ठप्राकरण न।म का दी उल्लेख मिलता दै । इसके ५ च्छव श्रौर ५ संवर रूप से दश अध्ययन मिलते हैं। अतः इसका नाम प्रश्त व्याकरण दशा अधिक ठीक लगता : है, किन्तु श्वेताम्वर परम्परा के आचार्यों ने प्राय: प्रश्न व्याकरण नाम ही प्रामा- सिक माना है | अधिकांश शाख्त्रीय प्रयोग ओर दिगम्बर साहित्य में भी परण्ह- वायरण, एेसा उल्लेख है, अतः प्रश्न व्याकरण नाम दी उपयुक्त सममना चाहिए । प्राप कहेंगे कि इसमें प्रश्त विद्या का सम्बन्ध नहीं हे, फिर प्रश्न वधाकरण यह नाम कैसा ? उत्तर यह है कि सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जस्बू के प्रश्न पर शरास्तव, संवर का प्रतिपादन किया है, इसलिये इसको प्रश्न व्याकरण कहने में बाधा नहीं हे । देखिए--गोम्मटसार की टीका में आचाय॑ ने लिखा है कि-शिष्यप्रश्नानुरूपतया कथाश्चतुर्विधा व्याक्रियन्ते यस्मिन्‌--तत्‌-प्रश्न व्याकरणम्‌ ।




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