दोहा - अन्त्याक्षरी | Doha Antyakshri
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[दोहा-भन्च्याक्षरी
कव्रीर सुपने रैन के, ऊघड़ि आये नैन)
जीव पड़ा बहु लूटि में, जग्े तो लैन न दैन ॥ १६।
कहा कियौ हम आय कर, कहा कहेंगे जाय ।
लाभ लेन तो दूर है, चाले मूल गेंवाय ॥ १७॥
कबीर कहा गरवियौ, ऊँचे देखि अवास ।
कल मरघट में लेटना, ऊपर जमि है घास ॥ १८॥
कवीर यह तन जात है, सके तो लेहु बहोरि।
नंगे हाथों वे गये, जिनके लाख करोर ( १६ ॥
काची काया मन अथिर, थिर थिर काम करन्त।
ज्यों ज्यों वर निधड़क किर , त्यों त्यों काल हसन््त ॥। २० ॥
कौड़ी-कौड़ी जोरि कं, जोरे लाख करोर ।
चलती बार न कछु मिल्पो, लई लड्भीटी तोर ॥ २१ ॥
कतीर कहा मरवियो, काल गहै कर केस ।
ता जाने कब मारिहै, के घर की परदेस 11 २२॥|
कबहु तप्यो पर ताप ते, हरी कबहु परपीर ।
आसा हीन अधीर कहेँ, कबहुँ वँधायों धीर ॥ २३॥
कहूं अनाथ असहाय की, कीन्दीं कुक सहाय ।
पार कियो कहूँ काहु को, अपनो हाथ गहाय ॥ 5६४ ॥
काबा कासो त्यागि अब, देखहु दीनन गेह ।
दरिद नरायन ही जहाँ, दर्शन देत संदेह २५॥
को बरसे घत समय तिर, कं भरि जनेम निरास।
तुलसी यावक चातकहिं, एक तिहारी आस ॥ २६ ॥
काज विगारत आपनो, सुजज और के काज |
बलिहि निवारत नैन की, हानि सही भगराज ॥ २५। |
कविरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर |
जो पर पीर म॑ जानई, सो काफिर थे पीर ॥ रूप ||
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