पट्टमहादेवी शान्तला भाग - 1 | Patt Mahadevi Shantala Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : पट्टमहादेवी शान्तला भाग - 1  - Patt Mahadevi Shantala Bhag - 1

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सी० के० नागराज राव - C. K. Nagraj Raav

Add Infomation AboutC. K. Nagraj Raav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
बाहरी वरामदे में शान्तला अपनी सखियों के साथ खेल रही थी । वह हृठात्‌ खेलना छोड़कर रास्ते की ओर भाग चली । रह गयीं तीन सखियाँ जो उसके साथ खेल रही थीं। उसका अनुसरण करती हुई भाग चलीं । अह्यते की दीवार से सटकर खड़ी शान्तला पास आती हुई घोड़ों के टापों की ध्वनि सुनती, जिधर से आवाज आ रही थी उसी भौर नजर गाड़े खड़ी रही। सखियों में से एक ने उसके कन्धे पर हाथ रखकर पूछा, “क्या देख रही हो शान्तल। ?” शान्तला ने इशारे से चुप रहने को कहा । इतने में राज-पय की ओर भुड़ते हुए दो घुड़सवार दिखायी दिये। धोड़े शान्तला के घर के अहाते के सामने रुके । सवारों की सज-धज देखकर सबियाँ चुपचाप खिसक गयीं । रके घोड़े हांफ रहै थे 1 उनको फाटक पर छोडकर अन्दर प्रवेश करते राज- भटो की ओर देखकर शान्तला ने पृष्ठा, “आपको किसते मिलना ই? राजभट शान्ता के इस सवाल का जवाब दिये बिना ही आगे वढ़ने लगे । शान्तला ने धृष्टता से पूछा, “जी ! मेरी वात सुनी नहीं ? यह हेग्गड़े का घर है। यों घुसना नहीं चाहिए । आप लोग कोन हैं ?” उस दीठ लडकी शान्तला के सवाल को सुन राजभट अप्रतिभ हुए । आठ-दस साल की यह छोटी बालिका हमें सिखाने चली है ? इतने में उन दो सवारों में से एक ने वालिका की तरफ़ मुड़कर कहा, “लगता है कि आप हेग्गड़ेजी की बेटी अम्माजी - हैं। हम सोसेऊर से आ रहे हैं। श्रीमान्‌ युवराज एरेयंग प्रभु और श्रीमती युवरानी- जी एकल मह्मदेकी हे एका एव शेजा है । हेखज्रेमरी और हेसजतीजी है न 2 “हेग्गड़ेजी नहीं हैं, आइए, हेग्मड़तीजी हैं,” कहती हुई शान्तला बैठक की भोर चली 1 राजभटो ने उस वच्ची का अनुसरण किया । महाद्वार पर खडी शान्तला ने परिघारिका मालव्वे को आवाच दी मौर कटा, “देखो, ये राजदूत आये हैं, इनके हाथ-पैर घुलवाने और जल-पान आदि की व्यवस्था करो ।” फिर वह राजभटों को आसन दिखाकर, “आप यहाँ बिराजिए, ,ঘকুদহাইিবী হান্নলা | 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now