प्रगतिशील भारतीय साहित्यकारों के छविचित्र | Pragati Sheel Bharatiy Sahityakaron Ke Chhavi Chitra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pragati Sheel Bharatiy Sahityakaron Ke Chhavi Chitra by ये॰ प॰ चेलीशेव - Y. P. Chelishev

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ये॰ प॰ चेलीशेव - Y. P. Chelishev

Add Infomation AboutY. P. Chelishev

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
13 वाद, जीचन के आनंदमय स्वरूप ओर उदात्त सानववाद के विकसि मे मदद दी। जवाहरलाल नेहरू के शब्दो मे, उनका मन उपनिषदों कौ उत्तम बातों से सराबोर था । साथ ही, उपनिषदों के दर्शन की इकतरफ़रा व्याख्या करना न केवल भारतीय दार्शनिकों ओर सांस्कृतिक विचारकों का, जो यथां से दूर भागने का प्रयत्न कर रहे थे, बल्कि योरुपीय लोगों का भी मुख्य शौक रहा जिनमें प्रथम शोपनहावर थे जो संसार पर निराशावादी दृष्टि रखते थे और संसार के वैज्ञानिक ज्ञान के मुकाबले कलात्मक नैसगिक ज्ञात की उपेक्षा और विरोध के हामी थे । प्राचीन भारत में काव्य-कला के विवेचन का स्तर बहुत ऊंचा हो गया था। इसने बहुत से लेखकों का मार्गदर्शन किया और बहुत-सी उच्च कलात्मक क्ृत्तियों के सृजन में मदद दी जो आज रूप की निर्दोषता, विचार की गहराई और उनमें प्रकट भावों के सौंदर्य से हमें चकित कर देती हैं। फिर भी, परंपरावादी मान्यताओं से आने वाले कुछ आधुनिक साहित्यिक लोग साहित्य में कोई भी नवीनता देखकर उसे अत्तीत का विस्मरण भी, प्राचीन काव्य शास्त के मुल नियमों का उल्लंघन या फिर अज्ञान मानने लगते दै । इस प्रकार, त्रजकिशोर चतुर्वेदी के विचार में, निराला, पंत, दिनकर, बच्वन तथा अन्य प्रसिद्ध कवियों से, जिनकी आधुनिक हिंदी कविता के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, कुछ भी आशा नहीं कीजा सकती क्योकि कविता को नया रूप देने का प्रयत्न करते हुए वे परंपरागत काव्य- सिद्धांतों से दूर हो गये । उनका कहना है कि सिर्फ संस्कृत और इसका साहित्य वह पोषक मिट्टी है जिसपर आधुनिक भाषा और कविता को फलना-फूलना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय साहित्य के विकास में संस्क्ृत की भुमिका महत्त्वपूर्ण रही है और आज भी बह महत्त्वपूर्ण है। जेसाकि कृष्ण कृपलानी ने ठीक ही लिखा है, संस्कृत वह्‌ संयोजक वल है, जोड़ने वाली कड़ी है जो भारतीय संस्कृति की निरंतरता और अखंडता कायम करने में मदद करती है, एक ऐसा चश्मा है जो अपनी प्रचुर जल राशि से अपनी सारी धाराओं को भरा रखता है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि संस्कृत की शब्दावली, इसकी कविता, उसकी विशिष्ट छंद-पद्धति और बिब विधान पद्धति तथा कलात्मक माध्यम भारत कौ साहित्यिक प्रक्रिया के विकास में बड़ी महत्त्वपूर्ण भुमिका निभाते हैं और राष्ट्रीय भारतीय भाषाओं के निर्माण और विकास को गति देते हैं। पर साथ ही, हमारे विचार में, आधुनिक भारतीय संस्कृति के विकास में संस्कृत भाषा और उसके साहित्य के विकास का एकमात्र प्रेरक नहीं माना जा सकता। संस्कृत इसे पुष्ट करने वाली एक महत्त्वपूर्ण भाषा है पर एकमात्र नहीं । यह्‌ बात ध्यान में रखनी चाहिए कि संस्कृत के साहित्य ने लोग-सा्ि्य




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now