त्रिशंकु | Trishanku
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रवर्ग-सरी मे रूपलिया जब करती होगी कोलि-स्जान
वाहुबक्ष पर जलकण लगते होगे मोती की मुरकान ।
मंदिर मेघमाला खी ट्रे उन से क्रीडा-रत होकर,
ढल जाती होगी अतृप्त सी उनके भ्रगो को धोकर।
केसी होगी देहयाप्टि जिनमे सरगम होते मुखरित,
केसी है गति लारय-नृत्य की जुद्ाएं करती चविरचिंत?
जिजकी आखो का ओन खोलता मावे कै अर्थ गहन,
केसे होगे उन रूपिय के रस बरसाते अश्र-गयले°
शात मानसर जल पर तिरते हसी सी जिनकी आसे,
जिह्वा रहती ह मोन बात करती है जिनकी एय £
जिन ওত में प्रणय-पुराण के पाठ सदा लिखे रहते,
वे ही विषधर सर्प-नयन मुझे निरन्तर इसते रहते ।
नील कमल या मृगचितवन अथवा जेसे किसलय कोमल,
बरवस मन प्राण खींच लेते उनके रवष्न-नयन चचल ।
दमक रही ज्यों घने वादलो मे महद्धिम विघुत-रेखा,
शात सुमुख यर सदाः खिची रहती होगी रिमत-रेखा।
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