धरती और स्वर्ग | Darti Aur Svarg

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Darti Aur Svarg by देवराज - Devraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरा देश देखोगे, परदेशी ? ঘা देश देखोगे, परदेशी ? चत में सहस्न फूल खिलते लहक जाते, धरती-हवा कुब्ज-कानन महक जाते; जेठ की ग्रखर ज्योति रूपा-सी चमक देती, गुहा-गर्त-कूपों से तम की घमक देती; सावन में ऊदे मेघ ले जाते घूम-घुमड़, परेम का सँदेशा बिज्जुरखों में आक सुघड़; कातिक में भूमि-जल-व्योम में लहर लेती, ज्योत्ना- रसीली रजनी के मधुहास जैसी | मेरा देश देखोगे, परदेशी भोले-से किसान यहाँ भोले चरवाहे, सखे भोली गाम-वधुए सहज मुसकाएँ, सखे। ग्रेमणणी कोमल भी वीर ललनाएँ हैं, आनवाली, संकट में जोहर दिखाएँ हैं। राम से ग्रथम सीता वन की दिशा में चलीं वेश किये तापसी । मेरा देश देखोंगे, परदेशी जन हें यहां के बड़े ज्ञान की पिपासाभरे, मृत्यु के भवन पहुंचे नचिकेता बिना डरे; १४




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