धरती और स्वर्ग | Darti Aur Svarg
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
5 MB
कुल पृष्ठ :
104
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेरा देश देखोगे, परदेशी ?
ঘা देश देखोगे, परदेशी ?
चत में सहस्न फूल खिलते लहक जाते,
धरती-हवा कुब्ज-कानन महक जाते;
जेठ की ग्रखर ज्योति रूपा-सी चमक देती,
गुहा-गर्त-कूपों से तम की घमक देती;
सावन में ऊदे मेघ ले जाते घूम-घुमड़,
परेम का सँदेशा बिज्जुरखों में आक सुघड़;
कातिक में भूमि-जल-व्योम में लहर लेती,
ज्योत्ना- रसीली रजनी के मधुहास जैसी |
मेरा देश देखोगे, परदेशी
भोले-से किसान यहाँ भोले चरवाहे, सखे
भोली गाम-वधुए सहज मुसकाएँ, सखे।
ग्रेमणणी कोमल भी वीर ललनाएँ हैं,
आनवाली, संकट में जोहर दिखाएँ हैं।
राम से ग्रथम सीता वन की दिशा में चलीं
वेश किये तापसी ।
मेरा देश देखोंगे, परदेशी
जन हें यहां के बड़े ज्ञान की पिपासाभरे,
मृत्यु के भवन पहुंचे नचिकेता बिना डरे;
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