बुद्ध - चर्य्या | Buddha - Charyya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
684
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जास्तमें चैस्ड-घर्मफा उत्थान और पतन)
২৯৬
निवासे जासानीते पचाने जासको ये । यदी वजह ६, जो परोद भिशवुजको एके রা
सदने पिप ना सुश्किल ছীনাযা । ्ाह्णेमिं भी यचि वाममार्गा ये, पि 513
गहीं। বীনা तो सबके सर वत्ञयानी थे।. इनके भिषुभोकी प्रतिष्ठा उनके सदाचार हर
विद्यापर निर्भर ने थी, वलिक उनके तथा उसके मत्रों सौर देवदाओकी गद्धत प्ानिपोषर
ती तछ्रोने इन अदधत द्ाकनियोकां दिवारा निरल दिवा 1 अनता समदने र्गी, ष्म
चाद ये 1 इतका कड पड हुआ रि, जब बौद, सिक्षुओने शपे छ मतो भौर मन्दरो
किते म्म कराना चाषा, तत्र उसे रिये उनदे स्या नहो भित 1 स्तत, ५ छावाए-
न, द्यावी मिश्चमोको उस समव --ज 7, सु अप्याचारके कारण र एक-एक
वैसा बहुमुर्य मालम होता था--कौन रफयोकी येरी सौंपता ? पल यह हुआ कि, बीद्ध अपने
है” परेस्थारोकी मरम्मत करानेपें सफल न दो सके और इस प्रकार उन भि अशरण ছা
गये। ब्रायन ह् वात न धी । उतमें सबके सम बाममार्गा न थे । कितने ही भव भी
वनी दिशा कौर आाचशके कारण पूने काते थे । इसल्यिउन्द फिर पने मन्दिरोभो बनपानेके
কিউ रुपये মিল गये । बतारस+ पास हो थोद्धोका अत्यन्त पवित्र तोधै-स्थान ऋषिपतन-
सृगदाय (वतमान सारनाथ) है । वहा की ভুয়া माद्र दुभा दै कि, कान्यत्र गोविन्द
न्द्री सनः बुमासेवीया बनवापा বিছা, बहाका समते पिठरा विहार था । ভন অহ
इसे नश्कर दिया, तब किर इसके धुर्नागिमोणफ्ी कोशिश गौ फो गयो । दप विष्ट, यारे
विश्वदाथका भन्दिर, एके बाद एक, चार बार नये त्रिते बना । सरसे पुराना मन्दिर विश्ेधर-
गये पाया, जटा सय मस्निद् ट, आर दिमतरयो छोग अव्र भो समर नर चदाने जति
1 उसके देके घाद व् बना, मिसे साजकल अदिविश्येघवर कहते दे । उसे भी तोद
टैनेपर शञानवावा् बन, जिसका हटा हुआ भाग अप भी औरंजेयकी मह्जिदफे एक कोनेमें
मोजद दै । इस मन्दिरकों जब और॑गजेयने तुड़दा दिया, तब चर्चमान मदिर बना । नारद)
उद्न्न्तपुरी, जेनवन आदि दूसरे बौद्ध पुनोत स्थानोयें भी दम बारहदी शताब्दीके बादकी इसारतें
नहीं पाते हैं । छामा तारानाथके इतिहास भी हम जानते दे कि, विद्वारोके तोड दिये जानेपर
उनके बिवासी मिश्ु भाग-भागक! तिव्यत, नेपार तथा दूसरे देशोकी और चरे गये । छंसछ
मानोरी भादि, हिन्दुओोसे एयफ बौद्धोकी जाति न भी |. एक ही जाति क्या, एक ही घरमें
याण भौर बौद, दोना मतोके आउसी रहा करते थे । इसलिये अपने मिक्षुभोकि अभाव
उन्हे अपनी झोर खींबनेक सिये, जहा उनके व्राह्मण धर्मा रक्-पवंधी क्षाकपेण पैदाकर रहे से,
यदा उनमेंसे शुलादा, धुनिया आदि कितनों ही छोटी समझी जातैवाली जातिपोवों गुंसल*
मानोदी ओरते भय और प्ररोभव वेश किया जाता था, जिसके फारण एक दो शतान्दियोंमें
ही बौद्ध था तो ध्राह्मण घर में मिल गये, या सुसटमान बन गये |
+शहल सांशत्यायन |
সি
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