कूटकाव्य एक अध्ययन | Kutakavya Ek Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प
का महत्त्व भ्रशकारों का प्रमोस सौरदर्यानुभूति की बृद्धि एवं पूटत्व
क्॒ प्रयोग के लिए । सूर के शुटपर्दों के तीन प्रयोगव--बमत्कारिता
रहस्पास्मक कप से धौन्दर्यबर्णम प्रौर रठि तथा बिमोग की ध्यचापूर्स
ददर्प्ोष्ी तीदवा का पनुमष यमक पलप रूपुकातिध्योत्ति,
भिरोषामास भाभ्विमानू प्रादि प्रलकारो पर पाभ्मित दर्टोकफेगरष
सदाहरण ।
झम्प इबाइन--अ्षम्दमाप्ता स्म्दसाम्प से भ्रबंबोभ झड़ार्थ हारा प्रबंधोग
गरप्योम से अ्रम्दभोष भ्रौर प्रहेशिका पर प्राभित कूटो के कूछ उदा
इरण।
पाया शबा प्षेश्ी--वूट्त्व के लिए सम्द प्रमोग ।
खूर के कहों को दिप्ेफ्ता
১১
परिक्षिपणण फ--सूर के कूटपदो के सप्र प्व २१७--२४२
ज--(१)--पम्रृस्पापर के फूटपद २४३--२११
(२)- ध्रूरघारगशी के पूटपद २१४--२१६
(१)--शाहित्यघहरी के शुटपद २१४--१ २८
स्र-पदो की प्रकारादि एम से प्रभुक्तमरिषका
(१)- प्ृरसायर के पद्दो कौ प्रमुकृम रि[का ७ ३२९--११८
(२)--शाहित्मशहरी के पद्दो कौ प्रशृ्मरिका. १३१---३४२
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