जिनसहस्त्रनाम भाषा | Jin Sahastranam Bhasha
श्रेणी : काव्य / Poetry, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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घोर थी बुध सन्मार्ग: शुद्ध: तुम जगदीस ५ ९९ ॥
यूत सवाक है। प्रज्ञा पार सिता:।
দাহী यति नियमित सुतुम इंद्धिय महा पिताः ४ १६ ॥
है भदन्त लुम भद्ग कृत भद्र केटप सु वृक्ष ।
करः प्रदरः तुम भव्य के त्रिभुवन में प्रत्यक्ष ॥ ९४ ॥
वु उन्मूित कमं अरि क्म काए के आशु।
सुक्षणि कर्समण्यः कर्मठः तीस खबन में आंश ॥ १४४
हेयाहेय विचक्षण: अनन्त सक्ति अक्षेद्य ।
त्िपुरारि: चेलेचनः ज़िनेत्र:ः सु अभेद्य ॥ १६ ॥
तअम्बक त्रिअक्ष केवल: ज्ञान घीक्षण: एव ।
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৮
. समन्त भद्गः सान्त अरि धर्मचोर्यं दैव ॥ ९७ ॥
दया निधिः तभ नाम हि सद्ष्न दसी दंस ।
লিল অর্পন हा कृपालुः कृप दक जगद्रीस ५ १८ ॥
शुभयुः सुख है अभु सास दूत भगवान ।
पण्य रासि हो निरामय घर्मपाल जग জাল ॥ ২ ॥
जगत्पाल तुम चर्म के साम्राज्य गुणबान |
नसायकादृग्बासांद शत भथमतल नाम प्रधान ॥ २० ॥
दत ज्रां दिग्बालादिशत ॥ ६०० 0
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समोसरण पत्ति লজ্ঞা জাতি | জানাল कोविद् कहत वखान
सम चित कर ध्यात जे आप | हो पत्रित्ननर सो तज पा-
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स्िलस हस्चनाम साया! ॥ (१४ ) |
घ॥१९१५॥ अमित निरक्षर तुम च्वांच इंस। तदाप अगटद सु
अर्थ जगदीस ॥ निस्सन्देह जु स्तुति करें। खो अमाष्ट फ-
ल सहजे बरे. ॥२॥ तमही वन्धु जगत में एक। तुम
ही बैद्य जगत सु विवेक ॥ तुमहौ जगत् में ध्यावन योग।
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