लंका महाराजिन | Lanka Maharajin
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लंका महरानिन १७
बातें कऋरे। और हाँ! चौकीदार रोज तीन-चार-पाँच, चक्कर आता है।
भला सूने घर में उसे क्यों जाना चाहिए ! मानता हू. कि लाख ठसकी
महराज से मित्रता थी पर इसके यह माने नहीं कि यूने घर में दिन भर घुसा
रहे 1?
वात सों को ठीकजची | पर प्रत्यक्ष किसी ने कछ नकहा | किसी को क्या
लेना-देना | जो करेगा श्रपना परलोक बिगाड़िगा। यह कोई दिल की स्वच्छता
से नहीं कहता था, बल्कि दरखू चौकीदार के डर से | सब जानते हैं कि रात
को संय डलवा देना उसके बाँए दाथका खेलदै। सो कौन डे मक्खी
इस छाते को!
पर सुकुल को इसकी परवाह नहीं । वह तो साफ कहते थे | पंचायत
ब्रैठाऊँगा | सत्र साफ-साफ खोल के कहूँगा । पंच फैसला कर देगे।
दूध का दूध और पानी का पानी। हुका-पानी न बन्द करवा दूतोक्या
(कहना
महराजिन सब सुनतीं, पर उसकी सुननेवाला कोई न था | उनका कहना
था, “ओर है कौन जो आगे खड़ा होकर इलवाहों से बाते' करे'। न करूँ
तो काम कैसे हो १, सुकुल की नियृत में खामी है। सुल ने श्रषना
धर्म-ईमान गंवा दिया ই1+ पर महराजिन की बात किसी की कान तक भी
न पहुँची ।
और एक दिन गाँव भर में शोर हुआ कि सुकूल ने यहीं ब्राह्मणों की
पंचायत बुलाई है | क्रिशुनपुर; माधोगंज, शेखपुरा, नैपुरा, समी गवो के
অন্তর पधारे गे | महराजिन पर सुकुल द्वारा लगाए गए, अभियोगों पर
कैला दोगा, एक सप्ताह के वाद् |
सुकल ने बरगद के नीचे घास छिलवाई | गोबर से लिपवा दिया। जड़
पर बने थाले को चिकना कराया । बगल वाले पीपल के नीचे स्थापित महाचीर
जी की मूर्ति पर सवा पाव छेंदुर रगड़वाया |
खेत से श्रातो हु महाराजिन ने यह देखा । श्र सुना सुकुल कह रहा था `
হী जल गई पर ऐ'ठन न गई | घर और खेत दोनों पर कब्जा करके न
दिखाया तो सुकल नदीं !”
अन्न महराजिन के समझ में सव आ गया कि यह सुकल क्यों पीछे
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