लंका महाराजिन | Lanka Maharajin

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Lanka Maharajin by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लंका महरानिन १७ बातें कऋरे। और हाँ! चौकीदार रोज तीन-चार-पाँच, चक्कर आता है। भला सूने घर में उसे क्‍यों जाना चाहिए ! मानता हू. कि लाख ठसकी महराज से मित्रता थी पर इसके यह माने नहीं कि यूने घर में दिन भर घुसा रहे 1? वात सों को ठीकजची | पर प्रत्यक्ष किसी ने कछ नकहा | किसी को क्या लेना-देना | जो करेगा श्रपना परलोक बिगाड़िगा। यह कोई दिल की स्वच्छता से नहीं कहता था, बल्कि दरखू चौकीदार के डर से | सब जानते हैं कि रात को संय डलवा देना उसके बाँए दाथका खेलदै। सो कौन डे मक्खी इस छाते को! पर सुकुल को इसकी परवाह नहीं । वह तो साफ कहते थे | पंचायत ब्रैठाऊँगा | सत्र साफ-साफ खोल के कहूँगा । पंच फैसला कर देगे। दूध का दूध और पानी का पानी। हुका-पानी न बन्द करवा दूतोक्या (कहना महराजिन सब सुनतीं, पर उसकी सुननेवाला कोई न था | उनका कहना था, “ओर है कौन जो आगे खड़ा होकर इलवाहों से बाते' करे'। न करूँ तो काम कैसे हो १, सुकुल की नियृत में खामी है। सुल ने श्रषना धर्म-ईमान गंवा दिया ই1+ पर महराजिन की बात किसी की कान तक भी न पहुँची । और एक दिन गाँव भर में शोर हुआ कि सुकूल ने यहीं ब्राह्मणों की पंचायत बुलाई है | क्रिशुनपुर; माधोगंज, शेखपुरा, नैपुरा, समी गवो के অন্তর पधारे गे | महराजिन पर सुकुल द्वारा लगाए गए, अभियोगों पर कैला दोगा, एक सप्ताह के वाद्‌ | सुकल ने बरगद के नीचे घास छिलवाई | गोबर से लिपवा दिया। जड़ पर बने थाले को चिकना कराया । बगल वाले पीपल के नीचे स्थापित महाचीर जी की मूर्ति पर सवा पाव छेंदुर रगड़वाया | खेत से श्रातो हु महाराजिन ने यह देखा । श्र सुना सुकुल कह रहा था ` হী जल गई पर ऐ'ठन न गई | घर और खेत दोनों पर कब्जा करके न दिखाया तो सुकल नदीं !” अन्न महराजिन के समझ में सव आ गया कि यह सुकल क्यों पीछे डे £




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