कथाकार जयशंकर प्रसाद | Kathakar Jaishankar Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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এন कथाकार जयशंकर प्रयाद म्ेमचन्द ने हिन्दी उपन्यायों के ऋलात्मऋविकास का च्छा द्ध्न्त प्रस्तुत किया | चरित्र-चिंत्रण, कथोपकथन और माया-्थेली की दंष्ि से उन्होंने हिन्दी की मई दिशा प्रदान की। ग्रेमचन्द्र ने चरित्र-चित्रण का उपन्यास की आवार-श्कक्ति मानते हुए लिखा हैं-.मैं उपन्याय को मानत- चरित्र का चित्र-मात्र समझता हूं। मानव-चरित्र पर प्रकाश. डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्याव का मूल-तत्व है।*****«*उपस्वास के चरित्रों का चित्रण जितना हीं स्पष्ट, गहरा और विक्राघपूर्ण होगा इतना दी पढ़ने वालों पर उसका अखर पड़ैग[*”****““7 .प्रेमचन्द ने अस्त्रि-चित्रण में परिस्थितियों का श्रभाव दिखा ऋर गतिशील पात्र-छप्टि की । कुछ आद्सवादी चरित्रों को छोड़कर उनके पात्र मानव-चरित्र की चहुमुखी अन्तक त्तियों का गहरा ग्रमाव अंकित कर जाते हैं। उपन्यात्रों में- कयोपक्यन के महत्व पर भी उनकी दृष्टि थी। उनके कऋधोपकथन स्वामा- विंकता के अपूर्व उदाहरण हैं| उपन्यास-्षेत्र में: प्रेमचन्द ने जैसी सरल, सरस, सजीव और अभावोत्यादक भाषा-शेंली की श्रतिप्ठा की बसी आज तक दूसरा उपन्यासकार नहीं कर पाया है | पूतंवर्ती उपस्यायों में जिस सहज गतिशील अवबाह का श्रमांव दृष्ठिगत “होता है, वह प्रेमचन्द की कृतियाँ में नहीं हैं । सन्‌ १६०४ के लगभग ग्रेमचन्द्र का लब॒ुकाय उपन्यात्र अमा? यकायित्त हो छुका था किन्तु १६१४ से १६२६ का युग ग्रेमचन्द्र के साहित्य-उछजन का वास्तविक युग दे जिसका आरम्भ सिवा खदन? से और अन्त गोदान? होता दे । एक साहित्यिक और विचारक के नाते वह अपने युग की अबृत्तियों को साहित्यिक-चेतना के संस में उममझते रहे थे । उन सामयिक युग की सामाजिक, राजनीतिक और आधिक थत्रत्तियों को उनके याहिंत्व में पूरी पेठ मिली है.। अतिज्ञार वरदान? -सखिवा सदन”! और “गब्ननः में पेमचन्द ने चामानिक-समस्याश्रों और प्रद्नत्तियों पर इप्टिपात किया हें पतिला? से विववाजओं को नस्या श्र सिवा चदन में वेश्याओं की समस्या के अतिरिक्त मब्यवर्ग ढ्ी देनिक आर्थिक्र- कठिनाइयों, का चिंत्रण




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