अंगपविटठ सुत्ताणी | Angpavitth suttani
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
445
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ भंग-पविट्ु सुत्ताणि
सत्य समारंमते5वि अण्गे ण समणुजाणेजा, जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिण्णाया
भव॑ति से हु मुणी परिण्णायकम्मे ति वेमि॥२॥| पढम॑ अज्झयणं तइओद्देपो ।
से वेमि-गेव सय सोय भव्भाइक्ेन्ना, णेव अत्ताणं अन्भाइक्लेजा, जे टोगै
अन्भाइकलद, से अत्ताणं अन्भाइक्लह, जे अत्ताणं अब्माइक्खइ, से लोग
अव्भाइक्खइ ॥२८॥ जे दीहलोगसत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे; जे अस-
त्थस्स खेयण्णे, से दीहलोगसत्थरत खेयण्णे ॥२९॥ बीरेहिं एय अभिभूय दष्ट,
संजएहिं सया जतेहिं सया अप्पमत्तेहिं॥६०॥ जे पमत्ते गुणद्रिए से हु देडे জি
पवुच्चइ | त॑ परिण्णाय मेहावी श्याणिं गो जम पुच्बमकासी पमाएण ॥११॥
लज्ञमाणा पुढे पास-अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं
अगणिकम्मसमारंभेण अगणिसत्थ समारंभमाणें, अण्णे अणेगरूबे पाणे विहिंसई
॥३१॥ तत्थ खड़ भगवया परिण्णा परवेश्या, इमस्स चेव जीवियस्स परिवेदण-
माणणपूयणाएं, जाइमरणमोयणाए, दुक्लपडिग्रायदेडं से सयमेव अगणिसत्थ
समारंभइ,अण्गेहिं वा अगणिसत्थ समारंभावेइ अग्णेवा अगगिसत्थ समारंभमाणे
समगुजाणइ | ते से अहियाए त॑ से अबोहिए.॥३३॥ से व॑ संबुज्ञमाणे आया-
णीय॑ समुट्ठाय सोचा, खछ भगबओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णाये भवह-
एस खट गंथे, एस खल॒मोहे, एस खल मारे, एस खड णरण | इच्चत्थ गढिए
लोए जमिणं विसूवसूवेदहिं सत्ये अगणिकम्मसमारेभेण अगणिसत्थ समारंभमाणे
अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसर ॥३४॥ से वेमि, रंति पाणा, पुटविणिस्सिया,
तणणिस्सिया, पत्तणिह्िसिया, कट्ठणिस्सिया, गोमयणिस्सिया; कंयवरणिस्सिया;
सन्ति संपाहमा पाणा, आहव सपति । अगर्णिं च खलं पुटा, एगे सेघायमा-
वन्ति, जे तत्थ सेघायमावजंति ते तत्थ परियावजति, जे तत्थ परियावजति ते
सत्य उद्दाय॑ति ३५] एच्य सत्थं समार॑भमाणस्स इए. आरंभा अपरिण्णाया भर्वति
एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इचः आरंमा परिण्णाया নতি ।३६॥ . तँ परिण्णाय
मेदावी णेव सय॑ अगणिसत्थं समारंभेना, गेवण्णेहिं अगणिसत्थ समारेभविना,
अगणिषत्थं समारभमाणे अण्मे न समणुज णना | जस्तेते अगणिकम्मसमारंभा
परिण्णाया भवेति, से हु मणी परिष्णायकम्मे त्ति वेमि ॥२७। चउत्योदेसो ||
ते णो करिस्सामि समुद्धर मत्ता मदम अभव .विइत्ता,.त.जे णो करए, एसौ-
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