अंगपविटठ सुत्ताणी | Angpavitth suttani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Angpavitth suttani by पारसमल डागा - Parasmal Daga

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पारसमल डागा - Parasmal Daga

Add Infomation AboutParasmal Daga

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
४ भंग-पविट्ु सुत्ताणि सत्य समारंमते5वि अण्गे ण समणुजाणेजा, जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिण्णाया भव॑ति से हु मुणी परिण्णायकम्मे ति वेमि॥२॥| पढम॑ अज्झयणं तइओद्देपो । से वेमि-गेव सय सोय भव्भाइक्ेन्ना, णेव अत्ताणं अन्भाइक्लेजा, जे टोगै अन्भाइकलद, से अत्ताणं अन्भाइक्लह, जे अत्ताणं अब्माइक्खइ, से लोग अव्भाइक्खइ ॥२८॥ जे दीहलोगसत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे; जे अस- त्थस्स खेयण्णे, से दीहलोगसत्थरत खेयण्णे ॥२९॥ बीरेहिं एय अभिभूय दष्ट, संजएहिं सया जतेहिं सया अप्पमत्तेहिं॥६०॥ जे पमत्ते गुणद्रिए से हु देडे জি पवुच्चइ | त॑ परिण्णाय मेहावी श्याणिं गो जम पुच्बमकासी पमाएण ॥११॥ लज्ञमाणा पुढे पास-अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं अगणिकम्मसमारंभेण अगणिसत्थ समारंभमाणें, अण्णे अणेगरूबे पाणे विहिंसई ॥३१॥ तत्थ खड़ भगवया परिण्णा परवेश्या, इमस्स चेव जीवियस्स परिवेदण- माणणपूयणाएं, जाइमरणमोयणाए, दुक्लपडिग्रायदेडं से सयमेव अगणिसत्थ समारंभइ,अण्गेहिं वा अगणिसत्थ समारंभावेइ अग्णेवा अगगिसत्थ समारंभमाणे समगुजाणइ | ते से अहियाए त॑ से अबोहिए.॥३३॥ से व॑ संबुज्ञमाणे आया- णीय॑ समुट्ठाय सोचा, खछ भगबओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णाये भवह- एस खट गंथे, एस खल॒मोहे, एस खल मारे, एस खड णरण | इच्चत्थ गढिए लोए जमिणं विसूवसूवेदहिं सत्ये अगणिकम्मसमारेभेण अगणिसत्थ समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसर ॥३४॥ से वेमि, रंति पाणा, पुटविणिस्सिया, तणणिस्सिया, पत्तणिह्िसिया, कट्ठणिस्सिया, गोमयणिस्सिया; कंयवरणिस्सिया; सन्ति संपाहमा पाणा, आहव सपति । अगर्णिं च खलं पुटा, एगे सेघायमा- वन्ति, जे तत्थ सेघायमावजंति ते तत्थ परियावजति, जे तत्थ परियावजति ते सत्य उद्दाय॑ति ३५] एच्य सत्थं समार॑भमाणस्स इए. आरंभा अपरिण्णाया भर्वति एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इचः आरंमा परिण्णाया নতি ।३६॥ . तँ परिण्णाय मेदावी णेव सय॑ अगणिसत्थं समारंभेना, गेवण्णेहिं अगणिसत्थ समारेभविना, अगणिषत्थं समारभमाणे अण्मे न समणुज णना | जस्तेते अगणिकम्मसमारंभा परिण्णाया भवेति, से हु मणी परिष्णायकम्मे त्ति वेमि ॥२७। चउत्योदेसो || ते णो करिस्सामि समुद्धर मत्ता मदम अभव .विइत्ता,.त.जे णो करए, एसौ-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now