संस्कृत में एकांकी रूपक | Sanskrit Me Ekanki Roopak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ घनक्यविजय की तुलना, धनञ्जय विजय की टीका, व्ययोग श्रीरव्रशणक क सुलनात्मद विवेचन, सौगन्धिया हसण, नरकासुर-विजय ब्यायोग, साहित्यिक समीक्षा, प्राइतिक' चित्रण, झख पराभव का ऐतिहासिश महत्य, भीमविकम, घर्ममुरि पर माघ का प्रभाव, एकारकियों मे रस, वीर रस वा शास्त्रीय विवेचन, ब्यायोगो में सतोविज्ञात और प्रन्तद्स्द् ॥ पंचम अध्याय उत्सृष्टिकाक तथा बीथी २४६-२६० उत्सृष्टिकाक, रूप-निर्देश, विभिन्न आचारयों के मत, झको वो विवेचना- उरूमग, कणमार, दूतघटो्वच । बोधो -रूपनिदेश, विभिन्न आचार्यों के मत, लीलावती वीथी भौर चद्धिका कौ समोसा, रामपाणिवाद का परिचय, रामपाणिवाद श्रौर मास। पष्ठ श्रध्याय सस्कूत साहित्य मे एकाकी रूपक २६१-३२५ उपखू्पक-परिचय और उपरूपको का इतिहास, एकॉकी उपरूपक-योष्ठी, नादूयरासक, रासक, मालिका, उल्लाप्य, काव्य, प्रेंखण, प्रेलणव, हल्लीश, श्रीयदित इत्यादि की शास्त्रीय दृष्टि से विवेचना, उन्मत्तराधव (प्रेक्षणक) तथा सुभद्राहरण (थ्रीगदित) वी समीक्षा । सप्तम अध्याय वीसवी शत्ताव्दौ के संस्कृत एकाकी ३९६-३७७ उनका वर्गीकरण भौर समीक्षा, रेडियो रूपक, सवादमाला, भनूदित रूपक, नाट्य-दास्‍्त्र के निपर्मों के आभार पर उनका विश्लेषण, सस्दृत्त एकाकी पर युग का प्रसाव, आधुनिक एकाकियों में प्रात्त वा बहिष्वार, रण्मदीय झ्रोर साहित्पिक दृष्टि से उनका सुल्यावन, पाश्चात्प एकाक्ियो की तुलनात्मक विवेचना, भ्राघुनिक भारतीय भाधपाप्रों (ट्विन्दी, बंगला, मराठी, मेथिली तथा दक्षिण भारतीय) के एक्रक्यों कीशास्त्रीय दृष्टि से तुलना! सम्दर्भ-गरन्य-मुचीः ३७८-३०३




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