प्रद्युम्न - चरित | Pradyumn - Charit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १२ )
स्वेत वस्त्र पदमासणि रीरा, करहि भ्रालवणि बाजहि वीर ।
भ्रागमु আহি देह बहुमतो, पशु पर्वों देवौ सुरस्वती ॥ ३॥'
जिणं सासण जो विघन हरेह, हायि लकुटि ले भ्रागे होड ।
भवियहू दुरिय हर्द श्रसरालु, भ्रागिवाणि परवडउ खितपालु ॥ ४ ॥
संवत् तेरहसद होड गंए, ऊपरि श्रधिकं एयारह भए ।
भादव सुदि पंचमिनजो सार, स्वाति नक्ष सनीर्चरु वार् ॥ ५॥
वस्तुबध :--
णतित्रि जिणवर सुद्ध सुपवित्त
नेमीसरू गुरनिलउ, स्याम वणु सिवएवि नंदणु ।
चउतीसह भ्रइसदइ सहिउ, कमकणी घण मारा महु ।
हरिवंसह कुल तिलडउ, निजिय नाह भवणासु ।
सासइ सुहं पावहं हरणु, केवलणाण पसु ? ॥६॥
विभिन्न भाषाओं में प्रध मन के जीवन से सम्बन्धित रचनायें:--
प्रद्म मन कुमार जैनों के १६६ पुण्य पुरुषों में से एक हैं । इनकी गणना
चौब्रीस कामदेवों ( अतिशय रूपवान ) में की गई है । यद नवमे नाराश
भ्री कृष्ण के पुत्र थे । यह् चरमशरीरी ( उसी जन्म से मोक्ञ जाने बाले ) थे ।
इनका चरित्र अनेक विशेषताओं को लिये हुए होने के कारण आकषेणों से
भरा पड़ा है | मनुष्य का उत्थान और पतन एवं मानव-हृदय की निरवेलताओं
का चित्रण इस चरित्र में बहुत दी खूबी से हुआ है. ओर यही कारण है कि
जैन वाह मय में प्रद्य मन के चरित्र का महत्वपू् स्थान है। न केवल पुराणों
में ही प्रसंगाठुसार प्रद् मत का चरित्र आया है अपितु अनेक कवियों ने
स्वतन्त्र रूप से भी इसे अपनी रचना का विषय बनाया है |
भ्य स्न् क, जीबन चरित्र सवे प्रथन जिनसेलाचाये कृत 'हरिघंश
प्राण के ४७ ये सगे के २० में पद से ४८ वें सगे के ३९ दे पद्य तकं {पिरत
है । फिर शुणभद्र के उत्तर पुराण म, स्वयम्भू कृत रिद्रशोमिचरिउ (८ वी
शताब्दी ) भे, पष्यश्न्त के महापुराण ( ६-१० बी शताब्दी ) भे वथा धवल
के. दरिबंश पुराण '( १० बीं शताब्दो ) मे व् पराप्त होवा है । इन रथनाभं
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