भक्त सुदर्शन नाटकम | Bhakt Sudshin Natkam

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Bhakt Sudshin Natkam by अयोध्यानाथ दीक्षित - Ayodhyanath Dikshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १० | कौलाचायः--श्ररे मूर्ख ! बद-नियुक्तोडस्मि । जुब्बिकः--अरे मूख ! वद नियुक्तोडस्मि । कौलाचार्यः--प्रपसर, गच्छ, न ते कायम्‌ । नुङ्गिकः--ग्रपसर, गच्छ, न ते कायम्‌ । कौलाचायः--( मनसि ) त्रयं वु गरदिशाच इव शिरसि पतितो नैवोपशा- म्यति, प्राक्ृतमेवाश्रये । ८ प्रकाशम्‌ ) साह साहु, नुत्त जुत्तं । বিভ चेव मे कज्जं ( हस्तेन पृष्ठमास्फाल्लयति ) सोहगणोऽसि । उचिषटउ गच्छुउ । पष्ठे अड । (२२) ४ प्रथ्वीराज-- यह एक दुःखान्त नाटक दे। इसकी रचना में भी वीररस की ही प्रषानता। है। संत्कृत के नाव्यशासत्र पिशारद दुःखान्त नायक के पक्ष में नहीं है। पर अंग्रेजी आदि अन्य भाभाशरं म॑ दुःखान्त नाटकों की अधिकता सबविदित है। सूत्रधार के मुख से कवि का कथन है कि-- दुःखान्तकं परमथापि सुखकरूपं लोकप्रनाधजनक समयानुकूलम्‌ । देशोत्थिति व विद्धत्‌ सदसन्नयाव्य॑ तस्मादिदं भवति में बहुमानपात्रम्‌ ॥। इस नाटक में इतिहासप्रसिद्ध मुहम्मद गोरी ओर भारतीय श्रन्तिम सम्राट्‌ पृथ्वीराज के युद्धों का वर्णन है । शब्दवेधी बाण द्वारा गोरी के वध के उपरान्त छुरिका से पृथ्वीराज की आत्महत्या पर इसका निवंद्दण होता है | ( २३ ) ५ भक्त सुदश न-- उपयुक्त नाटकों के समान इस नाटक के कथानक का श्राघार इतिहास नहीं. है । क्योंकि इसमें प्रागेतिहासिक कालिक घटनाओं का उल्लेख किया गया दे । सुद- शंन का निदर्शन कवि की कल्पना प्रसूत नहीं हे, पर श्रीदेवीभागवत में इसका वर्णन बड़ी आरभटी के साथ तृतीय स्कन्घ के १२ श्रध्यायों में ( १४ वें अध्याय से लगाकर २५ वं अध्याय तक ) उपवररित दहै। इसकी कथा देवी-भक्तों का




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