हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास १३ | Hindi Sahitya Ka Brihat Itihas Vol 13

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लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु '- Laxminarayan 'Sudhanshu'

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श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८११) तिथिक्रम, पुर्वापर तथा कार्य-कारण-संत्रंध, पारस्परिक संपर्क, संघर्ष, समन्वेय, प्रभावग्रहण, आरोप, त्याग, प्रादुर्भाव, अ्रंतर्भाव, तिरोमाव श्रादि प्रक्रियाँश्नों पर पुरा ध्याम दिया जायगा | ( ४ ) छंतुलन और समन्वय--इसका ध्यान रखना होगा कि साहित्य के सभी पत्तों का समुचित विचार हो सके । ऐसा न हो कि फिसी पक्ष की उपेक्षा हो जाय और किसी फा अ्रतिरंबन। साथ ही साथ साहित्य के सभी अंगों का एक दूसरे से संत्रंध और सामंजस्य जिस प्रकार से विकतित और स्थापित हुआ, उसे स्पष्ट किया जायगा । उनके पारस्परिक धंघर्षा का उल्लेख और प्रतिपादन उसी अंश श्रोर सीमा तक किया जायगा जहाँ तक वे धाहित्य के विकास में सहायक सिद्ध हुए होंगे । (५ ) हिंदी साहि.य के इतिहास के निर्माण में मुख्य दृष्टिकोण साहित्य- शास्त्रीय होगा : इसके अंतर्गत ही विभिन्‍न साहित्यिक दृष्टियों की समीक्षा और समन्वय किया जायगा। विभिन्‍न साहित्यिक दृष्टियो में निम्नलिखित की मुख्यता होगी : कू-शुद्ध साहि यिक दृष्टि ; अलंकार, रीति, रस, ध्वनि, व्यंजना आ्रादि । ख-- दाशंनिक । ग--सांस्कृतिक | घ-समाजशास्त्रीय । छ--मानवीय, श्रादि | च--विभिन्‍न राजनीतिक मतवादों ओर प्रच्ारात्मक प्रभावों से बचना होगा। जीवन में साहित्य के मूल स्थान का संरक्षण श्रावश्यक होगा | छु-साहित्य के विभिन्‍न फालों में उसके विविध रूपों में परिवर्तन और विका के श्राधारभूत तत्वो का संकलन श्रौर समीक किया जाय्रया । ज-~- विभिन्न मतो की समीहता करते समय उपलन्ध प्रमाणो परसम्यक्र्‌ विचार किया जायगा । सत्रसे भ्रधिक संतुलित ओर बहुमान्य सिद्धांत फी शोर संकेत फरते हुए भी नवीन तथ्यों श्रौर सि&तों का निरूपण संभव होगा । भ-- उपयुक्त सामान्य सिद्धातो कोटृषटिमे रखते हुए, प्रत्येक भाग के संपादक अपने भाग फी विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करेंगे। उपसमिति इतिद्दात की व्यापफ एकरूपता और श्रातरिक सामंजस्य बनाए रखने का प्रयास करना होगा । साथ ही जो पद्धति इतिहास लेखन में व्यवद्यत करने का निश्चय किया गया वह इस प्रकार है--- (६ ) प्रत्येक लेखक और कवि फी सभी उपलब्ध कृतियों का पूरा संकलन किया जायगा श्र उसके आधार पर ही उनके साहित्यक्षेत्र का निर्वाचन और




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