भारतीय राजनीति और शासन | Bhartaya Rajniti Aur Shasan

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Bhartaya Rajniti Aur Shasan by के० आर० बम्बाल - K. R. Bambal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८५७ का भारतीय विद्रोह ५ सख्या मे ईसाई धमं की दीक्षा ग्रहण कौ । इस बात का पहनेहौ सकेत किया जा चुका है कि अग्रेज़ो ने भारतीयों को मानसिक एवं आध्यात्मिक दासता के पाश में आबद्ध करने के लिये देश में पाइचात्य शिक्षा-प्रणाली का सूत्रपात किया था | अंग्रेज़ी भाषा तथा साहित्य के सौदयं तथा पारचात्य विचारो की प्राजलता ने भारत के शिक्षित वर्ग को मोह लिया । इस प्रकार, वे ही लोग जिनका देश के लिए सबसे अधिक महत्व था, डाक्टर्‌ पद्ाभि सीतारामय्या के शब्दो मे “विदेदी गासन के उपासक” वन गये । “उस समय जबकि किसान और कारीगर विदेशी शासन के जुए मे अपनी अन्तिम घडियाँ गिन रहे थे, राष्ट्र भौतिक, श्रौद्योगिक, बौद्धिक और नैतिक रूप से दिवालिया हो रहा था, श्रगरेजियत के रगमे रगे भारतीय नौकरियो तथा पदवृद्धि के लिये सधपं कर रहे थे 1 यह्‌ एक एमे दुबल एव पुरुषत्वहीन राष्ट का चित्र था जो न केवल अपना बल ही अपितु आत्मविश्वास भी खो बेठा था और अब अत्यन्त असहाय एवं दयनीय अवस्था में विदेशी ज्ासकों की कृपाकोर का याचक था ।”* ३. १८५७ का भारतोय विद्रोह १८५७ का सिपाही विद्रोह भारत के राष्ट्रीय इतिहास की प्रथम महत्वपूर्ण घटना है। कतिपय यूरोपीय इतिहासकारो का हृष्टिकोख रहा दहै कि वह केवल उन थोडे से असन्तुष्ट सिपाहियो का ही विद्रोह था जिन्हे कुछ अधिकारच्युत एव प्रतिष्ठा- हीन सामन्तो ने अपने स्वार्थ-साधन के लिये भडका दिया था । इसमे तो कोई सन्देह नही कि विद्रोह उस स्वतन्त्रता-आन्दोलन से सर्वेथा भिन्न था जिसका मूत्रपात १८५८ से काग्रेस की स्थापना के पश्चात्‌ हुआ । विद्रोह के सगठन में शिधिलता थी एवं उसे जनता की वास्तविक तथा अ्नवरत सहायता भी नही मिली । इसके अतिरिक्त विद्रोह एक प्रजातात्रिक और प्रगतिशील आन्दोलन होने की श्रपेक्षा एक प्रतिगामी आन्दोलन ही अधिक था । लेकिन फिर भी, वह भारत की स्वतन्त्रता का प्रथम युद्ध था, ब्रिटिश शासन को जड से उखाड कर फंक देने का एक प्रचंड और गौरवपूरां भ्रयास था । उसने विदेशी शासन के प्रति भारत की निष्क्रिय आधीनता के युग का भ्रन्त कर दिया । इसके उपरात राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का सघषं, यद्यपि मब उसका रूप दूसरा था, बराबर आगे बढता गया और वह १५ श्रगस्तं १९४७ तक जबकि भारत ने विदेशी शासन से मुक्ति प्राप्त की, जारी रहा । सन सत्तावन का विद्रोह ब्रिटिश शासन के प्रभाव से उत्पन्न हुए भारतीय जनता के भ्रतुल श्रसन्तोष का श्राकस्मिक विस्फोट था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लोलुप = ~ ~ স্পিড # डा. सीताराभय्या : “हिस्द्री आफ दि नेशनलिस्ट मूवमेंट इन इंडिया, पृ ७०८०




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