अन्तत: | Antatah
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारी भरकम राजनीतिक प्रभाव के सामने हमारी बात नहीं सुनी गई। और राबके बहुत
विरोध के बाद भी वह पेड तथा उस मैदान में लगे सारे पेड काट दिए गए लगभग डेढ
सदी पहले अंकुर के रूप मे फूटे पीपल के एक बीज ने रामय के लम्ये अन्तराल मे
विशाल वृक्ष बन कर वहाँ बसी छोटी सी बस्ती नुमा गाँव को अपने आँचल में समेट
लिया था। गाँव के बाजार के सहारे जो सीधी सडक उत्तर को गई है उस पर करीब
पच कोरा चलने के बाद यह गैदान है. जहाँ पहाडी की तलहटी में पीपल फैल गया
था। इस बीच न जाने कितने आधी आई, तूफान आए पर पीपल ज्यों का त्यो
अचल खडा रहा। बल्कि हर पतझड के बाद वह और अधिक सघन होता चला
गया। अफसोस कि अब वह एक व्यक्ति की महत्वाकाँक्षा का शिकार हो कर
भूमि - सात हो चुका था।
मैं यह बता चुका हूं कि इस पेड से मेरा गहरा रिश्ता था। मेरे बचपन ने
उसके नीचे ही कुलांचे भरी थी। वह मेरे जीवन की अनेक घटनाओं का साक्षी सदा
रहा। मं प्रतिदिन इसी मैदान मे से होकर पाठशाला पढने जाता, खाली समय में अपने
साथियो के साथ यहो गिल्ली डंडा ओर कचे खेलता रहता, पत्थर मार कर पीपल के
फल तोड कर खाता रहता। यही मेरी दिनचर्या थी। हम बच्चे उसके नीचे खूब ऊधम
मचाते। मेरे कुछ साथी पीपल का चढावा भी खा जाते थे, लेकिन वह सदा प्रसन्नता
रो झूमता रहता था। बडे होने पर मैंने न जाने कितनी बार उत्तरो बातें भी की थी।
अपनी चिंता और अवसाद के अनेक पल मैंने उसकी शीतल छाँह मे बैठ कर गुजारे
थे। मेरी चिंता और परेशानी को वह सदा अपने सुरभित मंद झोकों से दूर करने का
प्रयत्न करता था। अपने ऐसे मूक निरवार्थी राथी के बिछोह पर गै स्वयं बेहद खिन्न
और दुखी था पर आज उसी ने मुझे आरोपों के कटधरे म खडा कर दिया।
यूं तो पेड के कटने रो गाँव के सभी व्यक्ति दुखी थे, क्योंकि उसके साथ सारे
गाँव का संबंध था। पर बहुत कम लोग इस संबंध का महत्व समझते थे। अधिकतर
व्यक्ति इसे एक दुखद घटना मान कर भूल चुके थे। वैसे भी स्वार्थ के सामने ऐसे
भावुक रांबंधों का कोई मूल्य नहीं होता है। पेडों का कया, वे तो उगते रहते हैं,
केटते रहते ह { उनके कटने पर हमेशा दुखे थोडे ही मनाया जा सकता है ? यैर
अपनी - अपनी समझ की बात है।
यह कथा उस गांव की है जहां अडतालीस बरस पहले मैंने एक किसान के
घर जन्म लिया था। मेरा बचपन भी अन्य बच्चों की तरह पीपल तले ही खेल-कूद कर
बीता था। बडे होने पर पढाई पूरी करके मैं गाँव के प्राइमरी स्कूल में मास्टर बन गया
था। माँव-गाँव में शिक्षा के अर्न्तयत उस समय यहाँ प्राइमरी स्कूल खोला गया, जिसमें
मैं ही एक मात्र शिक्षक नियुक्त हुआ था। दो साल बाद एक मास्टर और आ गया था।
तब मेरा तबादला दूसरे गाँव में हो गया था।
उत्तर की ओर रामनगर रोड पर टूटी-फूटी सडक रो जुडा यह गाँव जिला
मुख्यालय रो करीब पचास-साठ किलो मीटर पडता है 1 दो सौ घरो की वस्ती वाले इरा
अन्ततः ~ शैल हल्दिया 15
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