जीव विज्ञान भाग 3 | Jiv Vigyan Bhag 3

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Jiv Vigyan Bhag 3  by रमेशदत्त शर्मा - Rameshdatt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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274 कहते हैं और उसके ठीक विपरीत सिरे को पएच या पृच्छ-सिरा (181 70} कहते है । सिलिडर के आकार के अथवा गोल जंतु की सममिति को अरीय (12) सममिति कहते है क्योकि उसके व्यास से गुजरती है रवी काट उसे स्मान भंड में बाँठ सकती है। उदाहरण के लिए जेलीफिश में भी अरीय सममिति (चित्न 2) होती है | कुछ अन्य जंधुओं मे सममिति के दौ अरीय त्तकं एक दूसरे कै समकोणपर होते हैं। प्रत्येक तख से काटने पर दो समान अ्धेक बनते है; एक ही दिक्ञा में स्थित त्तो से काटे गए अधैक उनसे जीव-विज्ञान इत्यादि) में भी कम विविधता नही है, पर स्वभाव और संरचना में भिन्न होते हुए कुछ मूल लक्षणों में उनमें आश्चर्यजतक समानता पाई जाती है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण है--मेरु या रीढ़ का होता । देह के मध्य- पृष्ठीय अक्ष मे स्थित शरीर को साधने वाला कंकाल ही रीढ़ या भेर है। इसमें क्रम से कुछ अस्थियाँ छूगी होती हैं जिन्हें कशेश्काएँ (ए४०४७४०7०७७) कहते है। इन्ही के कारण इस जतु समूह का ताम कशेरुकी पड़ा है। भ्रणा- লগা में सभी कशेशकियों में रीढ़ की जगह एक अन्य अंग होता टै, जिसे नोरोकांडं (००1०००५) या रा एफ फ्रफरफ्रा कर का रन कारक न 7 हू | লতি এ ;८ < + ৫ <“ ९“ 44৩ ~` दि र 1 ^ ^ ~, + १ সত 80৬ ৮ दे (ना ^ 41 2८ ४2 ५ +-&ॐ जे ल र॑ 19 ৩ ৭. षः ५ = ५ ४ वि है र ह বি ४ त्र & টি চি के # ५५ इ ^ न स कर বলা লাসিসিজাড चित्र 3 ऐम्किओक्सस (42101010803) एक भादिम समुद्री प्रोटोकॉर्डेट जिसमें नोटोकॉड की जगह रीढ़ नहीं बनती । नहीं सितै जो कि उतसे समकोण की दिश्ञा में स्थित तलो से काठे गए हों । हाथ-पैर, पंख (४४8५) और पव (05) मुख्य देह के उपाँग (807०1१886) होते हैं । किसी अंग या उपांग का जो भाग देह के केन्द्रीय अक्ष की ओर होता है जैप्ते कि घॉह का कोहनी से ऊपर का भाग ओर जंघा--उसे विभ्वटस्थ (970था॥॥) कटा जाता है, जवे कि केन्द्रीय अक्ष से दुर स्थित अंग जैसे कि हाथ और पाँव दूरस्थ (01905!) कहलाते हैं । कशे ठको ओर उनका वर्गीकरण तुम्हें याद होगा कि संपूर्ण अँतुजगत को प्रायः दो विभागों (डिवीजनों) में बॉटा जाता है : अकणेसकी या बिता रीढ़ वाले जंतु और कशेरकी या रीढ़ জা जंतु] अकशेस्की प्राणियों (अमीबा से स्टारफिश तक) में इतती विविधता मिलती है कि उनको किसी एक समूह से रख सकता अस्सत्र है, अतः उनको कई फाइछमों में बाँटा गया है जिनका वर्णन हम दस भाग के दूसरे खंड से करेंगे । क्रशेहकी प्राणियों (सृष्टी, मेक, राप, पक्षी, बंदर पृष्ठरज्जु कहने हँ । यह्‌ एूरी हुई या स्फीत (५1810) कोशिकाओं से बना हुआ भक्षीय दंड (ष2 70५) होता है । बाद मे परिवर्धन हीने पर नोटोकोंड के चारों ओर कशेरुकाओं की माला बन जाती है । कुछ जंतु ऐसे भी है जिनमे असली मेरु (रीदे) कभी ही बनता ओर केवल नोटोकॉर्ड ही होता है | उदाहरण के लिए मछली जैप्ते जंतु ऐम्फिओक्सस (0191105) मे जीवन भर्‌ नोठोकॉर्ड बता रहता है (चित्र 3) । कुछ जंतुओं जैसे कि एसीडियनों में नोटोकॉर्ड उनकी अर्भक अवस्थाओं में और केवल पश्च भाग में ही होता है और यह भी वयस्क जीव में बिना रीढ़ में बदले ही खत्म हो जाता है | ये सभी जंतु जिनमे मेस (रीढ) की जगह्‌ केवल नोटोकॉर्ड होता है, प्रोटोकॉर्डेट कह्दे जाते है । प्रोटोकॉडेंट और वर्दीश्रेट (कशेम्की) दोनो मिलकर पाइलूमस कॉडेटा बनाते हैं | मिम्तलिखित लक्षण कांडे को अ-कॉब्टों से अछग करते है, (1) इनमें एक पुष्ठीय कंकालू-अक्ष या नोटोकॉईड होता है, जिसकी जगह कशेशकियों में कशेरुकाओं से बनी हुईं रीढ़ ले लेती है,




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