गाड़ीवालों का कटरा | Gadivalon Ka Katara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना अलेक्ज़ेण्डर कुप्रिन के जगत-प्रस्यात रूसी उपन्यास 'यामा” का, जिसको रूसौ, फ्रानस्सीस, जरमन, स्पेनिश, इटालियन, जापानी, स्वीडिश, फिनिश, नारवीजियन, बोहौ- मियन, हन्गारियन, अंगरेजी, पोलिश, लिथूआनियन और दुनिया कौ लगभग सभी भाषाओं में बीस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं, हिन्दी संस्करण पाठकों को सेवा में उपस्थित है । इस उपन्यास का अमर मूल लेखक अपनी प्रस्तावना में लिखता है कि, मनुष्य समाज के सामने बहुत-सी एसी कठिन, भयकर ओर असाध्य दीखने- वाली समस्याएँ हज़ारों वर्षों से हैं जिनके बोक से उसकी कमर भुककर टट रही है और जिनके कारण वह॒ कभी-कभी तो इतना भक जाता है कि बिल्कुल पशु समाज की तरह नीचा दीखने लगता हे । युद्ध वेश्यावृत्ति, फाँसोी, अबपेट मजदूरी के लिए तनतोड़ मेहनत, थोड़े से खाते-पीते लोगों का अधिकतर भुख-मरे लोगों पर अधिकार इत्यादि मनुष्य समाज को ऐसी ही भयड्डर समस्याएँ हैं ।” इन समस्याओं में दो समस्याएं मनुष्य की दो मुख्य ओर मूल समस्याएं लगती हैं, जिनके उचित समाधान पर हमारा सबका बहुत कुछ सुख-दुख निभर है । एक तो रोटी कौ समस्या जिसको दर करने के लिए आज अधिकतर मनुष्यों की अधपेट मज़दूरी के लिए तनतोड़ मेहनत करनी द्वोतो है और जो थोड़े से खाखे-पीते लोगों का अधिकतर भुखमरे लोगों पर अधिकार हो जाने से इतनी भयड्डभर बन गई है कि मनुष्य-समाज में चारों तरफ कलह ही कलह दीखता है जिसमें थुद्ध' ओर फाँसिर्योः की नौबत आती है । दूसरी समस्या कामदेव की है जिसके बारे मेँ कदा जाता है किं पूणैरूप से भस्मौभूत उसको केवल एक शंकर भगवान दी कर सके ই जो ताण्डव नृत्य करके अन्त में सृष्टि का संहार करते हैं । “हंस पुस्तक माला” में पहिली पुस्तक मेक्सिम गोकी की महाकृृति माः उपन्यास का मेरा किया हुआ हिन्दी स्वरूप आपके ' सामने रखा गया था जो कि 'रोटौ की समत््या', “अधपेट मजदूरी के लिए तवतोड़ मेहनत” और थोड़े से खाते-पीतों के अधिकतर भुखमरों पर अधिकार और उससे मुक्त होने के प्रयत्नों का एक अद्वितीय




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