साङ्ख्य और शांकर अद्वैत में प्रकृति की संधारणा का समीक्षात्मक अध्ययन | Sankhya Aur Shandkar Adait Men Prakriti Ki Sandharna Ka Samixatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आए है - त्रिगुण, षोडश, विकार ओर पंचाश्रत बुद्रि कृत सर्गादि । इसी उपनिषद्
मे सर्वप्रथम कपिल एवं साख्य का नामौल्लेख हुआ है जिसके आधार पर अनेक
विद्वान यह निष्कर्ष निकालते हँ कि इस उपनिषद् के पूर्व ही साख्य व्यवस्थित
हो चुका था | मैत्रायणी उपनिषद्, जो अपेक्षाकृत अर्वाचीन उपनिषद् है, इसमे
सत्त वादिगुणत्रय, तन्मात्रो एवं पंच महाभूतो का वर्णन है। तन्मात्रो का
उल्लेख प्रश्नोपनिषद् मे भी प्राप्त होता है। इन उपनिषदों की तो बात ही
क्या है, अनेक विद्वान् ऋग्वेद के निम्नलिखित मन्त्र मे प्रकृति - पुरूष सिद्धान्त
की कुछ अस्पष्ट लक देखते हैँ -
दक्षस्य वादिते जन्मनि व्रते राजाना मित्रावरूणा विवाससि ।
अतूर्तपन्था पुरूरथो अर्यमा सप्त होता विषुरूपेणु जन्मसु । |
डा0 गजाननशास्त्री मुसलगांवकर ने इस मन्त्र में अदितिः का अर्थ
प्रकृति, दक्ष का अर्थ पुरूष एवं सप्त होता का अभिप्राय सात प्रकृति विकार
करके सांख्य की अति - प्राचीनता प्रतिपादित की है। डा0 आद्या प्रसाद मिश्र
ऋग्वेद के इस मन्त्र मे तम॒ आसीत्तमसा गढमगरऽप्रके्तः मे आए तम को सांख्य
के भावी अव्यक्त का संकेत লালটী ৪6 उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट होता
है कि सांख्य की पृष्ठभूमि मे विद्यमान विचार अत्यन्तं प्राचीन है एवं उपनिषदों
से प्रभावित है किन्तु यह नहीं स्पष्ट हो पाता कि वेद एवं प्राचीन उपनिषदों
[ बृहदारण्यक एव छन्दो0[ के विचार सांख्यशास्त्र से सम्बध हैं या नहीं। डा0
राधाकृष्णन का विचार है किं जब सांख्य यह दावा करता है कि उसका आधार
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1 मैत्रायणी - 2/5
2 पञ्चतन्मात्र भूतशब्देनोच्यन्तेऽथ पञ्चमहाभूतानि भूतशब्देनोच्यन्ते 1, वही 3⁄2
3 प्ररनोपनिषद - 4/8
4 ऋग्वेद - 10/64/5
5 सांख्य तत्वकौमुदी की व्याख्या तत्वप्रकाशिका - डा0 गजाननशास्त्री कृत
6 10/129/3 ऋग्वेद
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