आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी व्यक्तित्व और कृतित्व | Acharya Hajari Prasad Dwivedi Vyaktitva Aur Kratitv

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Book Image : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी व्यक्तित्व और कृतित्व  - Acharya Hajari Prasad Dwivedi Vyaktitva Aur Kratitv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ हजारी प्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व और कृतित्व लंपट तथा शठ अंकित किया ( यही बात श्रीहषं ने भी उसके बाबत कही थी ) तो आचार्य जी ने इसी तथ्य को रोमांटिक तथा प्रतीतात्मक परिवेश देने के लिए राहुल जी के दो अध्यायों से अधिक चार पांच अध्याओं में बाणभदूठ की एक জীবনী लिखने तथा अंत में दीदी का पत्र छापने और हावेलकूत कादम्बरी भूमिका का खंडन करने के लिये उन्हे प्रेरणा भिली। उन्होने इमे उपन्यास के लिये नहीं लिखा था, किन्तु “विशाल भारत' में पहली दो किस्तों के छपते ही सबसे पहले राहुल जी का प्रशंसात्मक पत्र और फिर स्व० चत्रसेन शास्त्री का पत्र पिला! फिर पांच अध्यायों में समाप्त किए जाने के लिए संकलित यह नावलेट एक अप्रतिम उपन्याप बन गया 1 बाणभट्ट एक ऐतिहासिक उपश्यास है । आजकल कई उपन्यास निकलते रहते हैं। फिर भी बाणभट्‌ट की कथा अधिकाँश उयस्थासों से भिन्न है। यह निराला और अनूठा उपन्यास है। श्री गोवद्धंन शर्मा एम० ए० ने बाणभद्‌ठ की आत्मकथा के बारे में लिखा है कि सफल आलोचक बनने के लिए विश्लेषण की जिस मक्ष्मता को पाना आवश्यक है वही आलोचनात्मक तत्व ( क्रिटिकल ছু নজতী ) संमवतया उपन्यास कौ सहूदयता मेँ बाधा पहुंचा सकता है लेकिन द्विवेदी जीकी आलोचनाओं और निबस्धों में पाठक के हृदय को गुदगुदाने, सांस्कृतिक स्मृति को जगाने और बहा ले जाने की जो शक्ति है, वही बाणभद॒ट की आत्मकथा को सफल उपन्यास बना सकी है । द्विवेदी जी रचित इस अत्मकथामेन तो कहीं इतिहास तत्व की अवहेलना हुई है और न उपन्यास तत्व का बलिदान ही । इस रचना में कहीं भी वस्तुगत अस्वाभाविकता नहीं मिलती ।* इतिहास के अच्छे विद्वान भगवतशरण उपाध्याय सप्रयास ढूृढ़ने के बाद भी श्री द्विवेदी जी के ऐतिहासिक निरूपण में कहीं कोई छिद्व व पा सके। शैली, भाषा, स्वाभाविकता, तत्कालीन समाज के चित्रण की दृष्टि से यह एक श्रेष्ठ उपस्यास भी है। “बाण- भेट्‌ूट को आत्मकथा , यह्‌ नाम ही पाठकों के हृदय में भ्रम उत्पन्न कर देता है। बाण की अस्प रचनाओं की भाँति इसका भी अधूरा होना बाण की दीषं प्रलंबय- मान अलंकृत भाषा शैली, तत्कालीन समाज व संस्कृति का सजीव उभरा हुआ चित्र, बाण भट्ट, हर्षवर्धन, कुमार कृष्ण वद्धंतध लोरिकदेव आदि ऐतिहासिक चरित्रों की अवतारणा और आत्मकथा की सहज स्वाभाविक विशेषतायें भावुकता प्रवाहमय अभिव्यंजना सब इस भ्रम को पैदा करने में सहायक होते हैं कि बाण १-उद्धत-धर्म युग-फरवरी १६६२ । २-साहित्य संदेश दिसम्बर १६५४।




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