तन्त्रवाधों के घरानो के परिप्रेक्ष्य में आधुनिक कलाकार | Tantravadyo Ke Gharanon Ke Paripekshya Me Aadhunik Kalakaar

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Tantravadyo Ke Gharanon Ke Paripekshya Me Aadhunik Kalakaar by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तो वे संगीत का ही सहारा लेते। बस, इस महत्वपूर्ण कारण ने सगीत को जन्म दिया । अब, यदि हम धार्मिक दृष्टिकोण से देखें, तो हिन्दु धर्म के अनुसार संगीत एव नृत्य के जन्मदाता - भगवान शकर है। जिन्होने सर्वप्रथम पृथ्वी पर ताण्डव नृत्य किया था और इसी ताण्डव नृत्य से सम्पूर्ण नृत्य निकले। पृथ्वी पर सगीत प्रचारक नारदजी को ही माना जाता है। सगीत और सहित्य की अधिष्ठात्री देवी मों सरस्वती को माना गया। ब्रह्मा, विष्णु ओर महेश - तीनो ही सगीत के महान पण्डित শ্রী। भगवान विष्णु ने सागर मथन के समय शख बजाकर संगीत का प्रथम नाद उत्पन्न किया था। कण्ठ-स्वर के विकास के साथ-साथ अन्य स्वरो की उत्पत्ति हुईं, और तब सात-स्वरों का सप्तक बना। जब हम संगीत के धार्मिक पहलू पर विचार करते है तो उसमें अनेक तथ्य ऐसे है जो इतिहास की कसौटी पर ठीक नहीं उतरते। इसीलिए इतिहासकार सगीत के धार्मिक रूप की सत्यता को मान्यता प्रदान नही करते। विख्यात इतिहासकार जाइफो ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक फ6 88८६8/0प70 ० ४०३४० में लिखा है :- “इतिहास की किरणे अभी उस युग तक नही पर्हुच पायी जिसमें कि सृष्टि का जन्म हुआ था, जिसमें कि मानव ने सर्वप्रथम पृथ्वी और आकाश के सुरम्य दर्शन किए थे। इतिहासकार उस युग को अन्धकार युग के नाम से सम्बोधित करते हैं क्योंकि उस युग के सम्बन्ध में ऐतिहासिक तथ्यों का अभाव है! उस अन्धकार पूर्णं युग मेँ सगीत ओर भाषा का अस्तित्व रहा होगा या नहीं - जब हम इस बात पर विचार करते है, तो हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि भाषा मनुष्य को सभ्य एवं सुसस्कृत बनाती डे, भाषा अन्धकार के आवरण को नष्ट करती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उस युग में भाषा का अस्तित्व नहीं रहा होगा। यदि भाषा का अस्तित्व ही रहा होता तो फिर उस युग के बारे में सबकुछ प्रकाशपूर्ण होता। लेकिन ऐसा नही है। किन्तु जब संगीत के बारे में विचार करते हैं कि उस युग में संगीत की स्थिति क्‍या थी तो




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