कुछ उथले कुछ गहरे | Kuch Uthle Kuch Gehre
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)था, लेकिन सूट यदि फ़िट न हो तो बेकार हो जाता है। यह विचार कितना खूब-
सूरत था कि ज़िन्दगी भ्रसली है भ्रौर मौत नक्रली । मौत को कभी नीद कहा गया,
कभी क़यामत तक इसे क़ब्न में सोना कहा गया तो कभी प्रात्मा को प्रमर कह कर
जनम-जनम के साथी का गीत गाया गया । प्राज़ इस विचार का भी गला धोंट
दिया गया है। मृत्यु को वास्तविक कहा जाता है । यदि यह वास्तविक है तो जीवन
विसंगत हो जाता है। इस लिए भ्राज जीवन भी विसंगति के रूप मे समस्या बनता
जा रहा है। मेरे एक कवि-मित्र जीवन को जीने के बजाय हस विसंगति की समस्या
में बिता कर भ्रधिक उदास हो गये हैं :
“किसी ने मुझे भ्जनबी कहकर पुकारा है
किसी ने मेरी नियति को भ्रभिदाप्त ठहराया है
कभी मैं बाहर का भ्रादमी माना जाता हूं
कभी विसंगत पुरुष के ताम से जाना जाता हूँ
इस प्रक्रिया में मैं सिमट कर
वर्णमाला का एक भ्रक्षर--
मात्र 'क' रह गया हूँ
झग्रारोपित नामों की भीड़ में
मैं भ्रनाम हो गया हूँ
पहले से भ्रधिक उदास हो गया हूँ।
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इस तरह विसंगति को यह समस्या मुर्क भी बुरी तरह घेर लेती है। यदि
समस्या एक हो तो छुटकारा पाने की सोच सकता हूँ; लेकिन जब समस्याएं ही
समस््याएँ हों तो प्रभिमन्यु की तरह इन के चत्रब्यूह में घिर जाने के सिवा भौर
चारा ही क्या है। एक झौर मित्र हैं जो खान-पान को भी समस्या बना डालते
हैं। वह खाने की मेज़ पर हर पकवान को विटामिन की तुला में तोलने लगते है ।
वह कभी भ्रालू का निषेध करते हैं, तो कमी दाल का। बहू दाल से भात खाने
को प्रन्न से भ्रन्न खाना कहते हैं। इन की बात मैं इस लिए मान लेता हूँ भौर इसे
समस्या बनने नहीं देता कि इन के भाव हर रोज़ बढ़ते ही जाते हैं। वह घास
खाने की बात भी करने लगे हैं। इस में विटामिन सी पाया गया है। इस तरह
क्या खाना है या कया पीना है, इस पर वह शोध करते रहते हैं भ्रौर इसे समस्या
समस्याओ्रों के घरे में / १३
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