कहानी साहित्य में महिलाओं की देन | Kahani Sahitya Me Mahilawon Ki Den

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kahani Sahitya Me Mahilawon Ki Den by बलभद्र प्रसाद - Balbhadra Prasad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बलभद्र प्रसाद - Balbhadra Prasad

Add Infomation AboutBalbhadra Prasad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ठ अनुयायी गण न कर सके । आदर्शवादिता की यह प्रवृत्ति तेजरानी पाठ 5, यशादा देवी, शान्ति देबी ओर शिवरानी देबी आदि मे देखी जा सहझृतो है। आज भी यह शवृत्ति पूर्णतया समाप्त नहीं हुई है, जिनके अनुसार किसी नेतिक पथ का त्याग करने वाला व्यक्ति: अन्त में यथेष्ट दर पाता हे आदि आदि । इधर हाल मे अत्यंत सरल भाषा लिखने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गई हे । कहानी की भाषा अवश्य ऐसी होनी चाहिये जिसे साधारण पढ़े-लिखे लोग समझ लें किन्तु एकदम. बाज़ार भाषा का प्रयोग तो असाहित्यिक ही होगा। इस प्रवृत्ति का जन्म सस्ती मासिक पत्रिकाओं से हुआ जिनका उद श्य केषल धनोपाजन होता है । इनके दिमाश में यह बक्त घुप गयी है कि अधिक बिक्री के लिये केवल बाज़ारू साषा का व्याकरण-सम्मत रूप अपनाया जाय | इमसे हिन्दी साहित्य को काफी ज्ञति पहुँच रही हे और कहानी की साहित्यिक प्रतिष्ठा भी घटती जा रही है | उदात्त मावो तथा विचारों का प्रकट करने के लिये उचित शब्दों का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है । यह बात हम सरल भाषा के हिमायती प्र मचन्द्र, सुदर्शन और कोशिक आदि में भी पाते हैं। इससे पाठक की कल्पना शक्ति तीव्र होती है तथा उस पर प्रभाव भी अधिक पड़ता है । अस्तु, समुचित साहित्यिक भाषा का अयोग होना प्रत्येक दृष्टिकोण आवश्यक है; और তল থা व्यथ के कठिन शब्दों, पद्चत्रल्षियों या अपथार्वतबादी काठ्यात्मक शब्दों का गुरुम वोक लादा न जाग्र | ऋननत में हम कह सकते है कि स्ली-कदानी कला का भविष्य काही आगाजतऊ है। आवश्यकता केवज्ञ इम बान की है कि भाषा-अधिकार, उचित अभ्यास अध्यवसाय, अध्ययन एच प्रयन्ल ऋरने का कष्ट उठाया जाय | की बाण के জম ट # ~~




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now