नया साहित्य नये प्रश्न | Naya Sahitya Naya Prashn

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Naya Sahitya Naya Prashn by नन्ददुलारे वाजपेयी - Nand Dulare Bajpai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निकष ( १२ ) इसी प्रकार कामायनी काव्य की समीक्षा करते हुए मेने सकेत' ओर श्रिय- प्रवास” जैसे काव्यो कौ नीतिवादी धारा की तुलना मे कामायनी के आनरवादी सवेदनो को श्रेष्ठतर सिद्ध. करनेकी चेष्टा की है। वासनाः ओर लज्जा सर्गो मे जो कान्य-सामग्री कामायनी मे प्रस्तुत की गई है, वहु उक्त दोनो काव्यो कै लिए असंभव ही थी। यहं न केवल आदशेवादी ओौर नीतिवादी काव्य-साधना की अपेक्षा कामायनी कौ यथाथंवादी काव्य-सृष्टि ओौर आनन्दवादी प्रतीक- योजना की विशिष्टता दिखाई गई है, वरन्‌ उन्हे मूलत अधिक काव्योपयोगी बताया गया है। किसी काव्य की अतिम परख उसके उद्घोषित आशयो द्वारा नहीं होती वरन्‌ उसके मानव-जीवन सबधी आतरिक सस्पशों और उसकी सपूणे ग्राह्यता द्वारा होती है। आदर्श से बढ कर भी यथार्थ नाम की कोई वस्तु हो सकती है; और नीति से भी अृधिक आनन्द का महत्व है, ये दोनो जानकारियाँ मुझे कामायनी काव्य से हुई । प्रसाद के नाठकों के अध्ययन से जो साहित्यिक तत्वज्ञान मुझे प्राप्त हुआ वह यह था कि उनके नाटक शास्त्रीय नही है (अपने मित्र के शास्त्रीय अध्ययन! से क्षमा सागते हुए); वे एक नवीन नादूय-दौरी का प्रादुर्भाव करते है जिसे स्वच्छन्द नाटय-दली' कहा जा सक्ता है) प्रसाद के नाटको की समीक्षा नए तत्वों के आधार पर ही की जानी चाहिए। दूसरे शब्दों में प्रसाद के नाटक साहित्य के प्रगतिशील अथवा विकासमान स्वरूप का प्रमाण उपस्थित करते है। इन नाठकों द्वारा एक अन्य साहित्यिक प्ररत पर भी प्रकाश पड़ा है। वह प्रश्न है कल्पना और वास्तविक घटना--साहित्य और इतिहास--के समन्वय का। जिस सीमा तक यह समन्वयं नही स्थापित होता--कल्पना के दु्य-पट पर इतिहास नही समा पाता--उस सीमा तक नाद्य कृति मे पूणे साहित्यिक्ता शौर संगति नही आती । प्रसाद के नाल्करी मे वस्तु, चरि भौर रस-सतेदन के बीच ¢ स्थान-स्थान पर जो असतुलन रह ग्रंया है, वह साहित्य पर इतिहास के अतिरिक्त आरोप का परिणाम है। |, मेरी तीसरी पुस्तक प्रेंम्नचद' 'के साहित्यिक विवेचन की है (यद्यपि इसका प्रकाशन विलब से, हु ङ्क पनी पहली पुस्तक मे प्रे्चद पर लिखते हुए मेने की हि বিন की थी। मेरा' पहला आरोप यह था कि प्रेमचद के उफ़्ल्ास बहुत अधिक वणं नात्मक जौर बोझीछे हे। दूसरी बात यह थी कि मुझे उनके उकृयासो मे न तो गहराई का चरितर-चित्रण मिक्ता भा और न कोई असाधारण विचार-सपत्ति दिलाई देती थी । वे सामाजिक जीवन के सतह्‌ पर कै कर ५.1 ^ रे




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