हिन्दी कहानीकारो के कथाचिंतन के संदर्भ में उनके कहानी साहित्य का मूल्यांकन | Hindi Kahanikaro Ke Kathachintan Ke Sandrabh Main Unke Kahani Sahitya Ka Mulyakan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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18 | हिन्दी कहानीकारों के कथा-विन्तत का मूल्यांकन “किस्सा तोत्ता मेना, किस्सा साढ़े तीन यार, फिल्साये चार यार', आते हैं और दूसरे में 'बामोबहार', 'किस्सा हातिमताई' व 'चद्दार दर्वेश', 'दास्‍्ताने अमी रहमजा' 'तिबस्मे होशहुत्रा'- जैसी कहानियां रद्दी जा सकती हैं ।!” यह ठीक है कि उक्त तीनों रचनाओं में कथा-तत्व भी है तथा किसी सीमा तक आधुनिक कह्दानी का-सा वह्तु-विन्यास री दिखाई देता है, किन्तु कहानी के रूपबन्ध में हम जिन तत्त्वों की अपेक्षा रखते हैं, वे इसमें नहीं दिखाई देते हैं। जिस प्रकार हम पंचतंत्र, जातक अथवा युराणों की कथाओं को बआास्यानात्मक शैली से युक्त होते हुए भी कहानी तहीं मान सकते, उसी प्रकार उक्त तीनों कथा-रचनाओं को भी आधुतिक कहानी के समकक्ष नहीं रखा जा सकता । ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दी की दूसरी मोलिक कहाती पं० रामचन्द्र शुषत की “गपारह वर्ष का समय' है तथा तीसरी बंगरभहिला की 'दुलाईवालो'। अपने ग्रंथ 'हिन्दी साहित्य का इतिहास” (1929) में माचायं रामचन्द्र शुक्ल ने इन कहानियों के विषय में लिखा है-- इनमें से यदि मामिकता की दृष्टि से भाव-प्रघान कहानियों को चुने, तो तीन मिलती हैं--/हन्दुमती', (1900 ई०), 'ग्यारह वर्ष का समय' (1903 ई०) तथा 'दुलाईबाली' (1907) । यदि 'इन्दुमती' किसी बंगला कहानी की छाया नहीं है, तो हिन्दी को यहो पहली मोलिक कहानी ठहरती है । इसके उपरान्त यारह बर्ष का समय' और “दुलाईवाली' का नम्बर आता है।* “थारह वषं का समय बहत सीधी-सादी कहानी है, जिसमे मात्र कया कह देने का आग्रह दिल्लाई देता है। इसका कथानक पर्याप्त माठकीय तथा अत्यस्त भावुकतापूर्ण है। भाषा भी क्लिष्ट तथा कृत्रिम है, जिसे एक अच्छी कहानी की भाषा नहीं कहा जा सकता, किन्तु साथ ही इस कहानो की विश्येषता यह है कि इसमें कुछ भाषागत प्रयोग मिलते हैं। दो मित्र रात को टहलते-टहलते एक उजड़े हुए गांव के खण्डहर में पहुंचते हैं । बहाँ संयोग से वे एक स्त्री को देखते हैं और उसका पीछा करके उसका परिचय प्राप्त करते हैं । स्त्री अपनी कहानी कहती है । स्त्री काशी की रहने वाली है। ग्यारह वर्ष पूर्व उसकी शादी उसो खण्डहर वाले गांव में हुई थी । देव-संयोग से गांव भयानक आढ़ में बह गया ओर लड़की अपने पिता के घर काशी में रहने लगी। घर में उसे 1. 'हिन्दी साहित्य कोश' भाग-2 (१० 417) में। इसका प्रथम प्रकाशन ऐंग्सो ओरिएण्टल लखनऊ से 1905 और नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से 1928 मे माना गवा है । इसकी रचना सादित्यकोणकार के अनुसार नवाब सआदत अली खां के बराश्य में (1800-1808 के बीच) हुई थी। 2- 'हिन्दी साहित्य कोश' भाग-1 (वरिभाषिक शब्दावली), १० 237




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