एक पंखड़ी की तेज़ धार | Ek Pankhari Ki Tej Dhar

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Ek Pankhari Ki Tej Dhar by शमशेरसिंह नरूला shamshersingh narula

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ एक पंखड़ी की तेज्ञ धार पर खर्च करनी. पड़ती थी । नियाज शाहजहानपुरी के जीविकोर्पाजन का तरीका अनोखा था और खूब सफल भी । उसने कुछ अमरीकी फौजियो से यारी गॉठ रखी थी। अमरीकी सामान के डिपो से वे फौजी चोरी का माल सस्ते दाम दे जाते और नियाज्रं उसे अच्छी कीमत पर बेचकर खूब खाम कमाता । अग्रेजी टाइपराइटरों की बड़ी माँग थी और वे अमरीकी हर महीने एक-दो टाइप की मीने उसेखादेतेथे। एक बार नियाज के अमरीकी दोस्त छ: टाइपराइटर एक साथ ले आए । अगले दिन नियाज को शक हुआ कि पुलिस इस “खरेरी का सुराग लगा रही है। रातों-रात उसने टाइप की मशीनें जमुता में जा फेंकी । उसके बाद वे अमरीकी फौजी फिर कभी नहीं आये । नियाज ने कई सप्ताह इन्तजार किया, फिर वह रोजी का कोई और साधन ढूँढने लगा, लेकिन सफल न' हुआ । छाचार होकर उसने जमीयत-उल-उलमाए-हिन्द का काम शुरू किया। मुस्लिम छीग के जोर पकड़ जाने के कारण राष्ट्रवादी मुसलमानों का बहुत महत्त्व हो गया था । जमीयत का संक्रेटरी शाहजहानपुर का ही था। उसके द्वारा नियाज को मुसलमानों की उस राष्ट्रवादी संस्था के दफ़्तर में काम मिल गया और वह अपने-आपको नियाज शाहजहानपुरी के स्थान पर नियाज सँयदी कहने लगा। जन्तर मन्तर के मंदान में वे दोनों थोड़ी देर चुपचाप खड़े रहे । आधी रात की ठण्डी खुली हवा मे लम्बे-लम्बे ससि रेने से कोहरी की तबीयत कुछ ससल गई । पतलन की उभरी हुई पिछली जेब पर हाथ फेरते हुए उसका अहं जाग उठा, जो पिछले तीन-चार महीनों में सो-सा गया था। वह सोच रहा था कि नियाज सैयदी की मरहम दाढ़ी पर किस तरह शोक प्रकट करे, सहानुभूलि के कुछ शब्द कहे जिनमें एकाध ओं के साथ काँटा भी हो । রি एकाएक वह सोचने रगा कि इन्सान कितना रूचकदार होता है और किस तरह बड़ी-से-बड़ी और तुच्छ-से-तुच्छ बात के लिए वह तैयार हो जाता है। सराय में रहने के बाद जब उसने रुपया कमाने का नया




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