पवहारी बाबा | Pavahaari Baba

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Pavahaari Baba by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अवनराणिका मं प्रकट हती है,-और फिर भी जितनी वह व्यक्त द्र ¢, उससे मी कड्‌ गुनी अधिके, ह, यह नितान्त सत्य हैं कि सह अनन्त गुनी अधिक हं | उम अनन्त चैतन्य का क्व एवं अंश हमे सुख देन के छिए इस जड़ जगतू में अबतीण हो सकता है | पर उसके दाप गाग को गरहौ टकर उसके माध स्पृष्ट के समान हम मनगाना व्यवहार नहीं कर सकते। वह परम सूक्ष्म तम्तु हमार इृष्टि-क्षेत्र से सबदा ही बाहर निक्छ जाती है तथा उसे हमार स्तर पर মানস আন की हमारी जो चेष्टा होती है उसे देग्वकर मुसकराती 8 | इस विपष म हम यही कहेंगे |क 'मुहम्मद को हो पर्बत के निकट याना बाल्य होगा'-उसमें “नहीं! कहने की गुंजाइश नहीं। मनुष्य की यदि यह आकांक्षा हो कि वह उस अतीत प्रदेश के सीन्दर्या का आनन्द ठ, वहाँ के बिमल आलोक में विचरण करे तथा उसके प्राण उस विश्व- कारण प्राणदवता के साथ अमद ताल से नृत्य करे ता उसे स्वर्ग ही उस राज्य में पदापैण करना होगा | ज्ञान ही विस्मयग-गज्य का द्वार ख्वोन्ठ ढेता है, ज्ञान ही पु कं। देवता बना देता है। साथ ही हमे यह भी स्मरण रखना चाहि। 1৭, जो ज्ञान हम उस वस्तु के निकट पहुँचा देता है, जिस जान शन से सत्र कुछ जाना जाता है -- जो समस्त अस्यान्य बिद्याओं का हृदय स्वरूप हू. जिसके स्पन्दन से समस्त विज्ञान के मत शरीर তি कठोपनिषद्‌, २-२-९ कम्मिझ सगवा विज्ञाते सवेमिद बिज्ञात सर्वति |-सुण्दकोपनिपढ , १-१-३ 4




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