यक्ष्मा | Yakshma

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Yakshma by गणेश नारायण खेतान - Gnaesh Narayan Khetan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्पत्ति के कारण चोटी धन पसीना एक करना पड़ता दै, परस्तु हम ঘুট্ি- फर खाद्य नदीं मिल्वा। रसो कां महत्व हमारे जीवन के लिये इतना वह गया दे कि उसके आगे जीवन में और किसी घौज़ को हम महत्व नहों देते। इसलिये हम ऐसे भोजन का ध्यान नहों रखते, जिससे शरीर के सभी अंर्गों का पुष्टि-लाधन द्वो । या अगर हमें इस घात का खयाल भी रद्दता है, तो तथ्यपूर्ण भोजन दमे मिल नहीं सकते। चाहे उसके लिये दम जितने दौ पसे खच धयो मफरें। पाज़ारों में अच्छी चोर नौ गिर सकती, गन्दी और क्त्रिम चीजों को है भरमार दै। पो, ते, दृ, आटा, चावल आदि, जो &मारे शरीर यन्त्र को क्रियाशोड और तरोताजा षनाये रखते है, अच्छा भर समुचित परिमाण में हम नहीं पाते। फल यहद्द होता दे दि एम जितना अधिक परिधम फरते है और उससे शरीर की जो शक्ति छ्वीण दो जाती हे, धद्द पूरी नहीं पड़ती। इससे यष्टम अस भयवर रोग वा शिकार ोना पड़ता है। साज जीषन क्री जरूरतें बहुत ज्यादा घट गयी हैं, ऐकिन उनकी पूर्ति के साधन बहुत दाम होते गये ६ै। दर आदभी को अपनी सौर अपने परिवार कौ सष सरट्‌ षौ आावश्यक- सायें दृ्‌र करने दे; टिये घतिरिक्त परिध्म बरना पहला ५ै। किसो-दिसो वो लगातार दारद-दारइ एंटे, दस-दस घंटे अतिरिक्त परिध्रन- ঘা




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